बाबर आज़म – भारत के पहले मुग़ल शासक की कहानी

आपने कभी सोचा है कि भारत पर पहली बार कौन आया और कैसे उसने राजसत्ता हासिल की? वही सवाल का जवाब बाबर आज़म हैं। उनका असली नाम ज़हीरुद्दीन मोहम्मद बाबर था, लेकिन इतिहास में हम उन्हें सिर्फ 'बाबर' ही जानते हैं। इस लेख में हम उनके बचपन से लेकर विजय तक के सफर को आसान शब्दों में देखेंगे।

बाबर की प्रारम्भिक जिंदगी

बाबर 1483 में फतेहपुर‑सिंध (आजकल उज़्बेकिस्तान) में जन्मे थे। उनके दादा उम्र बाय्यु, जो एक महान तिमूराई शासक थे, ने उन्हें लड़ाकू कला और पढ़ाई दोनों सिखाए। बचपन से ही बाबर को घोड़े पर सवारी, तलवारबाज़ी और कवि बनना पसंद था। 12 साल की उम्र में उनके पिता ने उन्हें फिरोज़ाबाद (आजकल अफगानिस्तान) भेजा जहाँ उन्होंने छोटी‑छोटी लड़ाइयों में हिस्सा लिया। ये अनुभव बाद में उनकी बड़ी जीतों की नींव बने।

जैसे-जैसे वे बड़े हुए, बाबर को अपनी पहचान बनाने का मौका मिला। 1504 में उन्होंने काबुल पर कब्ज़ा किया, लेकिन वह भी छोटा सा ठहाका था। असली चुनौती तब आई जब उन्हें भारत की तरफ रुख करना पड़ा।

बाबर के मुख्य युद्ध और शासन

1519 में बाबर ने अपने भाई को मारकर काबुल पर फिर से अधिकार जमा लिया, लेकिन उनके सामने दिल्ली का बड़ा मुक़ाबला था। 1526 में पानिपत की लड़ाई में उन्होंने इब्राहिम लोदी को हराया। इस जीत ने उन्हें भारत के कई हिस्सों पर हक दिला दिया। लोग अक्सर पूछते हैं, पानिपत की लड़ाई में क्या खास था? असली कारण उनकी नई सेना तकनीक और तेज़ घोड़े थे। बाबर ने तोपखाने का इस्तेमाल किया, जबकि भारतीय सेनाओं में अभी तक नहीं हुआ था। यही बात उन्हें आगे बढ़ने में मदद करती रही।

जित के बाद बाबर ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया और फिर आगरा पर कब्ज़ा कर लिया। उन्होंने राजदरबार में कला, वास्तुकला और साहित्य का विकास किया। उनका दरबार कवियों से भरपूर था; बहरामंद बेदिल आदि मशहूर शायर उनके द्वार पर आते थे। बाबर ने अपने विचार "बाबरी नामे" में लिखे, जिसमें उन्होंने युद्ध की रणनीति और प्रशासनिक मुद्दों को सरल भाषा में समझाया। यही दस्तावेज़ आज भी इतिहासकार पढ़ते हैं।

शासन के दौरान बाबर ने किसानों की जमीन सुरक्षित रखी, कर व्यवस्था सुधारी और न्याय प्रणाली को तेज़ बनाया। उनका मकसद था कि जनता खुश रहे, ताकि उनकी सत्ता टिक सके। उन्होंने जल-नलियों का निर्माण करवाया, जिससे खेती में सुधार आया।

बाबर के राज में सबसे बड़ी चुनौती अफगानों की लगातार लूट थी। लेकिन उन्होंने कड़ी नीति अपनाकर उन पर नियंत्रण पाया। उनका मानना था कि ताकत और न्याय दोनों जरूरी हैं। इससे उनके दुश्मन भी सोचते थे, "अब हम कब तक लड़ेंगे?"

1528 में बाबर का स्वास्थ्य बिगड़ गया और 1530 में वह अपनी मृत्यु को लेकर सोफे पर लेटे रहे। उनकी मौत के बाद उनका पुत्र हुमायूँ ने उत्तराधिकारी बना। हालांकि बाबर की उम्र कम थी, लेकिन उन्होंने भारत की इतिहास में एक नया अध्याय लिख दिया – मुग़ल साम्राज्य का जन्म।

आज हम बाबर को सिर्फ एक विजेता नहीं, बल्कि एक विचारशील शासक मानते हैं जिसने अपनी नज़र से भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को बदला। उनकी कहानी सुनकर हमें यह सीख मिलती है कि दृढ़ इरादा, सही रणनीति और जनता की भलाई का ख्याल रख कर ही इतिहास में नाम बनाया जा सकता है।

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