Vinayak Chaturthi 2025: आज शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत-उपाय और उत्सव की बड़ी तस्वीर
सित॰, 20 2025
तारीख, मुहूर्त और ज्योतिषीय संकेत
देश-विदेश में आज लाखों घरों में बप्पा विराजे हैं। कैलेंडर के मुताबिक यह उत्सव भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को होता है, और इस बार यह बुधवार, 27 अगस्त 2025 को मनाया जा रहा है। चतुर्थी तिथि 26 अगस्त को दोपहर 1:53 बजे शुरू होकर 27 अगस्त को 3:44 बजे समाप्त हुई। मुख्य पूजन के लिए मध्यान्ह काल सबसे शुभ माना जाता है—आज 11:06 बजे से 1:40 बजे तक का समय विशेष रूप से अनुकूल रहा।
बुधवार का गणेश से गहरा संबंध बताया गया है। परंपरा मानती है कि बुध ग्रह, वाणी और बुद्धि का कारक, गणपति की कृपा से संतुलित होता है। इसलिए व्यापारी, विद्यार्थी और टेक-प्रोफेशनल्स आज के दिन नए काम की शुरुआत, अनुबंध साइन करना, या किसी बड़े प्रोजेक्ट के किक-ऑफ को शुभ मानते हैं।
ग्रह-नक्षत्र की चर्चा चाहे जितनी हो, घर की सादगी से की गई पूजा भी उतनी ही प्रभावी मानी जाती है। मध्यान्ह काल में शांत मन से संकल्प और आराधना, दीया, धूप, नैवेद्य और आरती—यही मूल है। जिनके लिए मध्यान्ह में संभव नहीं था, वे प्रातः या सायंकाल भी विधि से पूजन कर सकते हैं।
चतुर्थी की रात चंद्रदर्शन को लेकर एक प्रचलित मान्यता भी है। कहा जाता है कि इस दिन चंद्रमा देखने से कलंक या मिथ्या अपवाद का योग बनता है। कई पंचांग चंद्रदर्शन से बचने की सलाह देते हैं। अगर अनजाने में दर्शन हो जाए, तो गणेश की ‘स्यमंतक मणि’ कथा का श्रवण, ‘संकट नाशन गणेश स्तोत्र’ का पाठ, और दुर्वा तथा गुड़ का अर्पण करने की परंपरा है।
वार्षिक महापर्व के साथ-साथ हर महीने शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी का व्रत भी रखा जाता है। 2025 में आगे की मासिक तिथियां—25 सितंबर, 25 अक्टूबर, 24 नवंबर और 24 दिसंबर—व्रतियों के लिए उपयोगी पड़ाव होंगी। नियमित साधना चाहने वालों के लिए यह मासिक अनुशासन सरल है: अन्न का त्याग, दिन में एक समय फलाहार, शाम को दीप, दुर्वा, मोदक और आरती।
पंचांग से बाहर निकलें, तो यह उत्सव परिवार और समाज की संगति का भी नाम है। सुबह की सजावट, बच्चों का शंख-घंटी बजाना, बड़े-बुजुर्गों के साथ आरती—ये छोटे-छोटे दृश्य, दरअसल इस पर्व का असली सौंदर्य हैं।
अब पूजा की तैयारी, सामान और क्रम की स्पष्ट बात। यहां लक्ष्य यही कि नियमों में उलझे बिना सार पकड़ें—स्वच्छता, श्रद्धा और संयम।
Vinayak Chaturthi 2025 पर घर-घर में की जाने वाली पूजा के लिए सामान्य सामग्री इस प्रकार रखी जाती है:
- मृत्तिका/शाडू माटी/धातु की गणेश प्रतिमा, लकड़ी या पीतल का आसन
- पीला या लाल कपड़ा, मौली, अक्षत (चावल), हल्दी-कुमकुम, चंदन
- दुर्वा (21 तंतु), लाल-जाफरानी फूल, पान-सुपारी, इलायची
- मोदक/लड्डू, गुड़, नारियल, पंचमेवा, फल, तुलसी (जहां मान्य हो)
- दीपक, घी/तिल का तेल, धूप, कपूर, घंटी, स्वच्छ जल, गंगाजल
- पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल), रोली, इत्र
- आरती थाली, नैवेद्य के लिए पत्तल या स्वच्छ प्लेट
पूजन का साधा-सा, लेकिन क्रमबद्ध तरीका कई घरों में इस रूप में निभाया जाता है:
- प्रातः स्नान के बाद पूजन स्थल को साफ करें, पीला/लाल कपड़ा बिछाकर आसन रखें।
- गणेश प्रतिमा स्थापित करते समय दाएं हाथ में जल लेकर संकल्प करें—परिवार, शिक्षा, व्यापार, स्वास्थ्य और सद्बुद्धि की कामना।
- आचमन और शुद्धि के बाद आवाहन-मंत्र या सरल स्मरण से बप्पा का ध्यान करें।
- अक्षत, कुंकुम-हल्दी और चंदन लगाएं। 21 दुर्वा अर्पित करें, लाल फूल चढ़ाएं।
- मोदक, लड्डू, फल और नारियल का नैवेद्य लगाएं। जल और पंचामृत से आचमन कराएं।
- ‘वक्रतुंड महाकाय...’ और ‘ॐ गं गणपतये नमः’ का जप करें। चाहें तो ‘संकट नाशन गणेश स्तोत्र’ पढ़ें।
- दीप-धूप दिखाकर आरती करें। परिवार सारे मिलकर आरती के बाद प्रसाद वितरित करें।
- अंत में क्षमा-याचना—जो कमी रह गई, उसे भाव से पूर्ण मानें।
व्रत-उपाय की बात करें, तो संक्षेप में चार बातों पर लोग जोर देते हैं। पहला—21 दुर्वा, 21 मोदक और 5 लाल फूलों का अर्पण। दूसरा—सुबह या मध्यान्ह में 108 बार ‘ॐ गं गणपतये नमः’ का जप। तीसरा—व्यापारियों के लिए तिजोरी/कैश काउंटर में सुपारी, हल्दी की गांठ और एक लाल धागा रखना (पूजन के बाद)। चौथा—विद्यार्थियों के लिए सरस्वती-गणेश संयुक्त प्रार्थना और पढ़ाई शुरू करने से पहले बस एक मिनट का ‘शांत ध्यान’।
कुछ परिवार ‘स्थापना’ के साथ 1, 3, 5, 7 या 10 दिनों तक गणपति को घर पर विराजमान रखते हैं। इन दिनों सुबह-शाम आरती, नैवेद्य, और आस-पड़ोस के लोगों का दर्शन, यही सरल परंपरा है। जहां समय कम हो, वहां एक दिन के ‘उत्सर्जन’ के साथ भी पर्व की आत्मा पूरी रहती है।
यदि घरों में जल-प्रदूषण की चिंता है, तो मिट्टी की प्रतिमा का प्रयोग और बाल्टी/टब में गृह-विसर्जन—यही सबसे सरल विकल्प है। सूखे फूलों को खाद में बदलना और सजावट में कपड़े/कागज का पुन:उपयोग, इस बार भी कई शहरों में अभियान के रूप में चल रहा है।
उत्सव, परंपराएं और बदलता समय
यह त्योहार सिर्फ घर के भीतर की पूजा तक सीमित नहीं। सार्वजनिक गणेशोत्सव की परंपरा 19वीं सदी के अंत में लोकमान्य तिलक ने शुरू की थी, ताकि समाज एकजुट हो। तब से मुंबई, पुणे, नागपुर, ठाणे, सोलापुर, बेंगलुरु, मैसूर, और हैदराबाद से लेकर छोटे कस्बों तक मंडलों का रंग-रूप हर साल नए रूप में सामने आता है।
महाराष्ट्र और कर्नाटक में इसकी रौनक अलग ही दिखती है—ढोल-ताशा पथक, दही-हांडी जैसी खेल प्रतियोगिताएं, सामाजिक संदेशों पर आधारित साज-सज्जा और रात की महाआरतियां। परंपरा के साथ तकनीक भी जुड़ गई है—डिजिटल दान, क्यूआर कोड से प्रसाद कूपन, क्यू-मैनेजमेंट ऐप, और भीड़-नियंत्रण के लिए लाइव अपडेट।
विदेशों में बसे भारतीय समुदाय भी पीछे नहीं। न्यू जर्सी, टेक्सास, कैलिफोर्निया, दुबई, सिंगापुर और सिडनी में सामूहिक पूजन के दृश्य अब सामान्य हो गए हैं। वहां ‘होम इमर्शन किट’ और क्ले-आइडल वर्कशॉप खास लोकप्रिय हैं, ताकि दूर रहकर भी अपनी जड़ों से रिश्ता बना रहे।
इस बार 10-दिवसीय उत्सव का समापन शनिवार, 6 सितंबर 2025 को गणेश विसर्जन के साथ होगा। यह सिर्फ अनुष्ठान नहीं, जीवन के चक्र—आगमन और प्रस्थान—का प्रतीक है। भक्त विदा के समय “गणपति बप्पा मोरया” के नाद में एक तरह का भरोसा जोड़ते हैं—‘अगले साल तू जल्दी आ।’
प्रशासनिक तैयारियों की बात करें, तो बड़े शहरों में समुद्र तटों, झीलों और तालाबों के किनारे सुरक्षा घेरों, डी-क्यूबिंग बैरिकेड, लाइफगार्ड और गोताखोर टीमों की तैनाती सामान्य हो चुकी है। विसर्जन स्थलों पर अस्थायी टैंक, क्रेन और पर्यावरण-मित्र कलशों की व्यवस्था अब मानक प्रक्रिया का हिस्सा है। कई नगर निगम प्लास्टर ऑफ पेरिस (PoP) की मूर्तियों पर रोक और सजावट में थर्मोकोल/सिंगल-यूज प्लास्टिक से परहेज का आग्रह दोहरा रहे हैं।
ट्रैफिक पुलिस आमतौर पर जुलूस मार्गों पर डायवर्जन लागू करती है। भक्तों के लिए सलाह सीधी है—पब्लिक ट्रांसपोर्ट का ज्यादा इस्तेमाल, पानी की बोतल साथ रखना, और भीड़ में बच्चों का हाथ पकड़े रखना। कई जगहों पर रात में ध्वनि-सीमाएं लागू होती हैं, ताकि अस्पतालों और रिहायशी इलाकों में परेशानी कम हो।
आर्थिक पहलू भी बड़ा है। गणेशोत्सव से पहले कारोबारी गलियों में रंग-बिरंगी मूर्तियां, लाइटिंग, फूल और मिठाई की दुकानें खासी रौनक लाती हैं। क्ले-आइडल का हिस्सा हर साल बढ़ रहा है। छोटे कारीगरों के लिए यह सीजन साल भर की कमाई का बड़ा हिस्सा जोड़ता है—यही कारण है कि समय पर ऑर्डर, उचित कीमत और समय की पाबंदी, कारीगर-समुदाय की सबसे बड़ी मांगें हैं।
इधर सांस्कृतिक मंचों पर भी बदलाव दिख रहा है। महिला-नेतृत्व वाले मंडलों की संख्या बढ़ रही है। कई जगह दिव्यांग-अनुकूल दर्शन पथ, रैंप, ब्रेल पोस्टर, और सांकेतिक भाषा में आरती जैसी पहलें दिखती हैं। रक्तदान शिविर, पुस्तक दान, प्लॉगिंग ड्राइव—ये सामाजिक गतिविधियां पूजा को सेवा से जोड़ती हैं।
स्वास्थ्य-स्वच्छता पर दो-तीन सरल बातें काम की हैं। प्रसाद हमेशा ढका रखें, खासकर मॉनसून सीजन में। सड़कों के जुलूस में खुला खाद्य कम लें, पानी विश्वसनीय स्रोत का हो। शोर और रोशनी में लंबी देर रहने पर बच्चों और बुजुर्गों को बीच-बीच में आराम दिलाना समझदारी है।
धार्मिक परंपरा में गणेश जन्म कथा अलग-अलग पुराणों में थोड़े-बहुत भेद के साथ मिलती है, पर संदेश एक—बाधा हटाने वाला देवता, जिसकी पहली पूजा बिना किसी संकोच हर शुभ कार्य से पहले होती है। हाथी का सिर—स्मृति और विवेक; बड़ा पेट—धैर्य और समावेशन; छोटा मुख—कम बोलकर सार कहना; और चूहे की सवारी—अहं का नियंत्रण। प्रतीकों से भरा यह स्वरूप जीवन-व्यवहार के लिए रोज के सबक देता है।
व्रत-उपाय की बातों में कई लोग ग्रह-शांति का संदर्भ भी जोड़ते हैं। ज्योतिष में केतु के साथ गणेश का संबंध बताया जाता है, इसलिए अटकते काम, बार-बार टलते इंटरव्यू, या कानूनी उलझनों में लोग गणेश स्तोत्र का नियमित पाठ अपनाते हैं। उपायों में जटिल कुछ नहीं—बुधवार को हरी मूंग का दान, बच्चों को किताबें देना, और कार्यालय में दिन की शुरुआत एक छोटी आरती से करना—यही सरल तौर-तरीके हैं।
मोदक की बात हो और स्वाद न आए, ऐसा कैसे। घरों में स्टीम्ड उकडी के मोदक, सूजी/गुड़-नारियल के वर्ज़न, और शुगर-फ्री विकल्प भी बनाए जा रहे हैं। कई मिठाई दुकानों ने इस साल मिलेट-आधारित मोदक पेश किए हैं—स्वाद और सेहत का मेल।
पर्यावरण की तरफ लौटें, तो विसर्जन के दौरान दो सावधानियां काम की हैं। पहला—मिट्टी की मूर्तियां और प्राकृतिक रंग। दूसरा—नदी/झील को साफ रखने के लिए अलग से सजावट-सामग्री (फूल, कपड़ा, प्लास्टिक) को जल में न फेंकना। कई नगर निकाय ‘नर्म विसर्जन’ के लिए समर्पित टैंकों और बाद में मूर्ति-मिट्टी को वृक्षारोपण में इस्तेमाल करने की पहल चला रहे हैं।
इस बार भी सामूहिक आरतियों में ‘सुंदरकांड’ की तर्ज पर ‘संकट नाशन’ का सामूहिक पाठ लोकप्रिय हो रहा है। कई मंडल थीम-आधारित सजावट में जल-संरक्षण, साइबर-सुरक्षा, महिला सुरक्षा और नशा-निवारण जैसे संदेश लेकर आए हैं, ताकि भक्त सिर्फ दर्शन ही नहीं, एक ठोस सीख के साथ लौटें।
घर में छोटे बच्चे हैं तो उन्हें पूजा के अर्थ समझाने का यह अच्छा मौका है—‘पहले गणेश जी क्यों? क्योंकि हम हर काम शुरू करने से पहले मन को शांत और बाधाओं को बाहर करना चाहते हैं।’ ऐसी सीधी बातें त्योहार को ‘क्लासरूम’ बनने देती हैं।
आज के दिन की एक उपयोगी दिनचर्या परिवार अपनाते हैं—सुबह स्थापना और संकल्प, मध्यान्ह आरती और नैवेद्य, शाम को सामूहिक कीर्तन या गणेश गीत, और रात को हल्की-फुल्की घर की भोग-थाली। जो लोग ऑफिस में हैं, वे भी ब्रेक के दौरान 10 मिनट की शांत प्रार्थना और जप कर सकते हैं।
जिन घरों में गणपति 1, 3, 5 या 10 दिन के लिए विराजते हैं, वहां प्रतिदिन एक छोटा संकल्प रखना अच्छा रहता है—आज प्लास्टिक-फ्री दिन, कल पड़ोसी के साथ प्रसाद साझा करना, परसों किसी जरूरतमंद को भोजन। इससे पूजा ‘अनुभव’ बनती है, सिर्फ ‘अनुष्ठान’ नहीं।
अंत में बस इतनी सी बात—श्रद्धा और सरलता साथ हों, तो मुहूर्त अपने आप बन जाता है। आज की दोपहर का शुभ समय गुजर भी जाए, तो मन अगर स्थिर है, तो पूजन सफल है। गणेश की कृपा का अर्थ भी यही है—काम शुरू करने का साहस, बीच में लगन, और आख़िर में आभार।
Soham mane
सितंबर 22, 2025 AT 12:49आज दोपहर को घर पर छोटे भाई के साथ मोदक बनाए, बस एक मिनट की आरती और जप कर लिया। बस इतना ही, पर दिल शांत हो गया।
Rahul Kaper
सितंबर 24, 2025 AT 10:31मैंने इस बार मिट्टी की मूर्ति लगाई, प्लास्टर ऑफ पेरिस नहीं। विसर्जन के बाद उसे बगीचे में दबा दिया, फूलों के नीचे। अब जब भी गुलाब खिलता है, लगता है बप्पा वापस आ गए हैं।
Dinesh Bhat
सितंबर 26, 2025 AT 01:20मैंने पिछले साल अपने ऑफिस के कैश काउंटर पर सुपारी और लाल धागा रखा था। फिर से रख रहा हूँ। नहीं तो ये बात बहुत अजीब लगती है, लेकिन जो भी हुआ, वो ठीक रहा। कोई विशेष कारण नहीं, बस रितुअल है।
Manoranjan jha
सितंबर 27, 2025 AT 20:01गणेश जी के बारे में जो बातें लिखी गई हैं, वो बिल्कुल सही हैं। पर एक चीज़ जो लोग भूल जाते हैं-ये त्योहार सिर्फ घर के भीतर का नहीं, बाहर का भी है। मैंने पुणे में एक सामूहिक आरती में भाग लिया, वहां एक दिव्यांग बच्चे ने ब्रेल पोस्टर के साथ आरती की। देखकर आंखें भर आईं।
हर साल यही बात होती है-लोग अपनी पूजा के बारे में बात करते हैं, लेकिन दूसरों की पूजा के बारे में नहीं। असली भक्ति तो वही है जो दूसरों के अनुभव को समझे।
मैंने अपने बच्चे को सिखाया है कि गणेश जी का सिर बड़ा है क्योंकि वो सोचते हैं। बड़ा पेट इसलिए क्योंकि वो सबको अपने अंदर ले लेते हैं। और चूहा? वो अहंकार का प्रतीक है। बच्चे इसे समझ जाते हैं।
हम लोग जो जटिल जप-माला, विधि, मंत्र बताते हैं, वो सब बाहरी चीज़ें हैं। असली बात तो ये है कि आप अपने अंदर की बाधाओं को कैसे दूर करते हैं।
मैं एक इंजीनियर हूँ। मेरे लिए गणेश जी का मतलब है-किसी भी डिज़ाइन की शुरुआत में एक छोटा सा नोट लिख देना: ‘शुभ आरंभ।’
मैंने अपने टीम के साथ एक नया प्रोजेक्ट शुरू किया है। आज सुबह उसकी शुरुआत एक छोटे से दीप और एक मोदक के साथ की। कोई नहीं जानता, लेकिन मुझे लगता है कि ये वही है जो असली शुभ मुहूर्त है।
मुझे नहीं लगता कि ग्रह-नक्षत्र या पंचांग सबसे ज़रूरी है। जब आप अपने दिल को शांत कर लेते हैं, तो हर घड़ी शुभ हो जाती है।
ayush kumar
सितंबर 28, 2025 AT 05:28अरे भाई! आज जब मैंने गणेश जी की आरती की तो उसी वक्त बारिश शुरू हो गई! बस जैसे बप्पा ने आसमान को छू दिया! मैंने तो बस दुर्वा चढ़ाई थी, बाकी सब बाहर भूल गया था! और फिर बारिश! ये तो बप्पा की कृपा है भाई, नहीं तो ये बारिश कहाँ से आ गई?!
मैंने देखा, गली में एक बुजुर्ग दादा बारिश में खड़े होकर गणेश जी के लिए फूल बरसा रहे थे। उनकी आंखों में आंसू थे। मैं भी रुक गया। उन्होंने कहा-‘बेटा, बप्पा आज आया नहीं, वो तो हमेशा साथ हैं।’
मैंने उन्हें एक मोदक दिया। उन्होंने उसे गणेश जी के सामने रख दिया। और फिर वो बोले-‘इसका एक टुकड़ा मुझे दे दो।’
मैंने उसका टुकड़ा खा लिया। और तब से मेरा दिल भारी हो गया।
मैंने अपनी बीवी को बताया। उसने कहा-‘तुम्हारा दिल बप्पा के लिए खुल गया है।’
मैं अब रोज एक बार ‘ॐ गं गणपतये नमः’ जपता हूँ। नहीं तो लगता है, बप्पा ने मुझे छोड़ दिया।
Chandni Yadav
सितंबर 28, 2025 AT 12:01यह पोस्ट विज्ञान के अनुसार बिल्कुल गलत है। ग्रहों का कोई संबंध नहीं है बुधवार के दिन और गणेश जी के साथ। ये सब पौराणिक अंधविश्वास हैं। चंद्रदर्शन से कलंक नहीं होता, ये एक अज्ञान का उपाय है। आपके द्वारा दी गई पूजा विधि भी अनौपचारिक और अव्यवस्थित है। वेदों में कोई ऐसी विधि नहीं है। यह एक आधुनिक निर्मित रितुअल है।
मोदक के लिए मिलेट का उपयोग? यह भारतीय संस्कृति का अपमान है। वेदों में चावल और गुड़ ही नैवेद्य है। आप अपने आप को आधुनिक समझते हैं, लेकिन वास्तव में आप अपनी परंपरा को बर्बाद कर रहे हैं।
गणेश विसर्जन के लिए टैंक? यह धार्मिक अनुष्ठान का अपमान है। नदी में विसर्जन ही सही है। पर्यावरण की चिंता? यह एक बाहरी भावना है, जो आध्यात्मिक अनुभव को नष्ट करती है।
महिला-नेतृत्व वाले मंडल? यह पारंपरिक धार्मिक संरचना को तोड़ने की कोशिश है। भक्ति का अर्थ नहीं है कि आप लोग अपने राजनीतिक दृष्टिकोण लाएं।
मैंने इस बार अपने घर में एक आदर्श पूजा की-सिर्फ वेद मंत्र, सिर्फ दूध और फूल, और सिर्फ पुरानी परंपरा। कोई नया तरीका नहीं। कोई भी बदलाव अनुचित है।
Raaz Saini
सितंबर 29, 2025 AT 15:08तुम सब लोग इतना बड़ा उत्सव क्यों बना रहे हो? बप्पा को तो बस एक मोदक चढ़ा दो, एक दीप जला दो, और चुपचाप जाओ। ये सब आरती, ड्रम, लाइटिंग, ट्रैफिक जाम, बारिश में भीड़-ये सब बस शो बन गया है।
मैंने अपने पिताजी को देखा है। वो रोज एक मोदक और एक दुर्वा चढ़ाते थे। कोई आरती नहीं, कोई फूल नहीं। बस एक शांत चिंतन।
और तुम लोग ये कह रहे हो कि बच्चों को सिखाओ कि गणेश जी बाधाएं हटाते हैं? अरे भाई, बच्चे तो अपने पढ़ाई में असफल हो रहे हैं, तुम उन्हें बप्पा की आरती गाने के लिए भेज रहे हो।
मैंने अपने भाई को देखा, जिसने एक दिन में तीन बार गणेश जी की आरती की-एक ऑफिस जाने से पहले, एक ब्रेक में, और एक रात को। और फिर उसकी नौकरी चली गई।
बप्पा को तो बस भक्ति चाहिए। नहीं तो तुम सब बस एक बड़ा शो चला रहे हो।
मैंने एक बार गणेश जी को अपने दिल से पूछा-‘क्या तुम मुझे माफ करोगे?’ और उसने जवाब दिया-‘मैं तो हमेशा तुम्हारे साथ हूँ। तुम्हारी आत्मा को जागू दे।’
मैंने उस दिन अपना गुस्सा छोड़ दिया।
Neev Shah
सितंबर 29, 2025 AT 16:20यह सब बहुत बेकार है। आप लोग जो विधि बता रहे हैं, वो तो एक बच्चे के लिए भी अत्यधिक जटिल है। मैंने एक बार एक वैदिक पंडित से पूछा-‘क्या वास्तव में गणेश जी के लिए 21 दुर्वा और 21 मोदक चढ़ाना जरूरी है?’
उन्होंने मुझे एक नज़र देखा और कहा-‘भाई, तुम्हारी बुद्धि भी तो गणेश जी की तरह होनी चाहिए।’
मैंने जवाब दिया-‘मेरी बुद्धि तो आपकी पुस्तकों से बहुत आगे है।’
और फिर उन्होंने मुझे एक ग्रंथ दिया-‘विष्णु पुराण, अध्याय 5, श्लोक 27’।
मैंने उसे पढ़ा। वहां कुछ भी नहीं था।
यह सब एक बड़ा धोखा है। आप लोग अपनी बेकारी को धार्मिकता के नाम पर ढक रहे हैं।
मैंने एक बार अपने ऑफिस के कैश काउंटर पर लाल धागा बांधा। अगले दिन मेरा बोनस बढ़ गया।
मैंने इसे गणेश जी की कृपा नहीं, बल्कि मेरे बैंक के स्वचालित प्रोग्राम की वजह माना।
आप लोग जो भी कह रहे हैं, वो बस एक अनुभव है। विज्ञान का नहीं।
और अगर आपको लगता है कि गणेश जी आपकी नौकरी या परीक्षा बचा सकते हैं, तो आप अपनी जिम जाना भूल गए हैं।
Himanshu Kaushik
सितंबर 29, 2025 AT 20:42मैंने अपने गाँव में एक छोटी सी मूर्ति लगाई। कोई दीप नहीं, कोई फूल नहीं। बस एक चूल्हे पर बनाया हुआ मोदक। बच्चे आए, उन्होंने खाया। बुजुर्ग आए, उन्होंने आरती की।
कोई नहीं जानता था कि आज चतुर्थी है। लेकिन सबने जान लिया।
मैंने बस एक बात की-मैंने अपने दिल को खोल दिया।
Sri Satmotors
सितंबर 30, 2025 AT 11:30आज बच्चों के साथ मोदक बनाया। उन्होंने कहा-‘मम्मी, गणेश जी को भी खाना पसंद है?’
मैंने कहा-‘हाँ, और वो तुम्हारे हँसने को भी पसंद करते हैं।’
Kamal Sharma
सितंबर 30, 2025 AT 19:32मैं ऑस्ट्रेलिया में रहता हूँ। हमारे यहाँ एक छोटा सा गणेश मंदिर है। बुधवार को हम एक छोटी सी आरती करते हैं। कोई ढोल नहीं, कोई भीड़ नहीं। बस हम चार लोग-मेरी बीवी, मेरे बच्चे, और मैं।
हम एक छोटी सी मिट्टी की मूर्ति लगाते हैं। बारिश के बाद उसे बगीचे में दबा देते हैं।
हमारे बच्चे अब भारतीय भाषा बोलते हैं। उन्होंने अपने दोस्तों को गणेश जी के बारे में सिखाया।
हम यहाँ अकेले नहीं हैं। दुबई, लंदन, न्यूयॉर्क-हर जगह भारतीय अपनी जड़ों को याद कर रहे हैं।
हम नहीं भूल रहे। हम बस अलग तरीके से याद कर रहे हैं।
Sohan Chouhan
अक्तूबर 1, 2025 AT 15:04ये सब बकवास है। मैंने इस बार बप्पा की पूजा नहीं की। मैंने अपनी नौकरी के लिए एक लेटर लिखा। और वो लेटर गणेश जी के नाम पर भेजा।
अब तुम लोग बोल रहे हो कि बप्पा की कृपा से सब ठीक हो गया? नहीं भाई, मैंने खुद लिखा था।
तुम लोग अपनी बेकारी को धार्मिकता के नाम पर छिपा रहे हो।
मैंने अपने दोस्त को बताया-‘गणेश जी तो बस एक बच्चे का खिलौना है।’
उसने कहा-‘तुम तो बहुत बड़े बन गए हो।’
मैंने कहा-‘हाँ, और अब मैं बच्चों को नहीं, बल्कि अपने दिमाग को पूजता हूँ।’