को‑पैरेंटिंग क्या है? आसान टिप्स और दैनिक अभ्यास
आपने सुना होगा ‘को‑पैरेंटिंग’, पर असल में इसका मतलब बस इतना ही है कि माँ‑बाप दोनों मिलकर बच्चे की परवरिश करें। अब ये कोई नया शब्द नहीं, बल्कि एक ऐसा तरीका है जो घर में बराबरी और टीम वर्क लाता है. अगर आप भी चाहते हैं कि आपका बच्चा सुरक्षित, खुश और समझदार बड़ा हो, तो इस पेज को पढ़ें – यहाँ बहुत सारे सरल उपाय मिलेंगे.
समझदारी से संवाद कैसे बनाएं
सबसे पहले बात आती है बातचीत की. अक्सर माँ‑बाप में छोटी‑छोटी बातों पर झगड़े होते हैं, जो बच्चे तक पहुँचते हैं. एक तरीका: रोज़ 10 मिनट मिलकर ‘फ़ैमिली मीटिंग’ रखें. इस दौरान हर कोई अपने दिन के बारे में बोले और आपस में छोटे‑छोटे नियम तय करें – जैसे स्क्रीन टाइम या पढ़ाई का समय.
बच्चे को भी सुनें, उसकी बातों को गंभीरता से लें. जब बच्चा कहता है “मैं खेलना चाहता हूँ”, तो तुरंत ‘नहीं’ नहीं कहते, बल्कि विकल्प दें – “खेलने के बाद 15 मिनट पढ़ेंगे?” इस तरह आप समझाते हुए भी सीमाएँ तय कर रहे होते हैं.
समान जिम्मेदारियाँ कैसे बाँटे
घर में काम का बंटवारा भी को‑पैरेंटिंग का अहम हिस्सा है. माँ‑बाप दोनों मिलकर खाना बनाना, कपड़े धोना या स्कूल की तैयारियों में मदद कर सकते हैं. जब आप दोनों एक साथ कार्य करें तो बच्चा देखता है कि घर चलाने में टीमवर्क जरूरी है.
उदाहरण के लिए: सुबह का नाश्ता तैयार करने में माँ रोटी बना सकती है और पिता फल काट सकता है. या फिर बच्चे को स्कूल भेजते समय पिता कार चला सकते हैं, जबकि माँ बैग पैक करती है. ऐसे छोटे‑छोटे कदम से बच्चा समझता है कि हर कोई मदद कर रहा है.
ध्यान रखें, जिम्मेदारियों में लचीलापन भी होना चाहिए. अगर किसी दिन एक पैरेंट व्यस्त हो तो दूसरा थोड़ा अधिक काम ले सकता है, लेकिन बाद में संतुलन बनाना न भूलें.
को‑पैरेंटिंग सिर्फ काम का बंटवारा नहीं, बल्कि भावनात्मक समर्थन भी है. जब बच्चा स्कूल में कुछ नया सीखता है या खेल में जीतता है तो दोनों माँ‑बाप एक साथ उसकी तारीफ़ करें. इस से बच्चे को भरोसा मिलेगा कि उसके दोनो माता-पिता उसका साथ दे रहे हैं.
अंत में, याद रखें: को‑पैरेंटिंग का मकसद बच्चा नहीं, बल्कि पूरा परिवार बनना है. जब आप दोनों मिलकर नियम तय करेंगे, संवाद करेंगे और जिम्मेदारियाँ बाँटेगे तो घर की हवा स्वच्छ, खुशियों भरी रहेगी.