जेरोम पॉवेल क्या हैं? उनकी नीतियों का भारतीय बाजार पर असर
जेरोम पॉवेल अमेरिका के फेडरल रिज़र्व (Fed) के चेयरमन हैं, यानी देश की सबसे बड़ी केंद्रीय बैंक की प्रमुख। उनका हर बयान या फैसला सीधे ब्याज दरों को छुएगा और दुनिया भर में स्टॉक, बॉन्ड, रुपये की कीमतें बदल सकती हैं। इसलिए भारतियों को भी पॉवेल की बातों पर नज़र रखनी चाहिए।
फेडरल रिज़र्व की भूमिका और पॉवेल का लक्ष्य
Fed का मुख्य काम महंगाई को कंट्रोल करना, रोजगार बढ़ाना और आर्थिक स्थिरता बनाये रखना है। पॉवेल ने अक्सर कहा कि कीमतों में तेज़ी (inflation) को रोकना सबसे बड़ा काम है। अगर महंगाई बहुत हाई हो तो फेड ब्याज दरें बढ़ाता है ताकि लोग कम खर्च करें, निवेश घटे और दाम नीचे आएँ। यही प्रक्रिया भारत के लिए भी असर डालती है क्योंकि विदेशी पूंजी का बहाव उसी से प्रभावित होता है।
भारत में मौद्रिक नीति पर प्रभाव
जब पॉवेल ब्याज दर बढ़ाते हैं, तो डॉलर की कीमत अक्सर ऊपर जाती है। एक मजबूत डॉलर के कारण भारतीय एक्सपोर्टर्स को फायदा मिल सकता है, लेकिन आयात महँगा हो जाता है और रुपये कमजोर होते हैं। इससे भारत में तेल‑गैस जैसे वस्तुओं की कीमतें बढ़ती हैं, जो सीधे महंगाई को धक्का देती हैं। इस वजह से RBI (भारतीय रिज़र्व बैंक) भी अपनी नीति बदल सकता है—कभी दर घटा कर आर्थिक गति तेज़ रखता है, कभी बढ़ाकर महंगाई पर काबू पाता है।
पॉवेल के बयान में “डेटा‑ड्रिवन” शब्द बहुत बार आता है। इसका मतलब है कि फेड हर निर्णय को आंकड़ों की बारीकी से देख कर लेता है—जैसे रोजगार रिपोर्ट, उत्पादन, उपभोक्ता खर्च आदि। भारतियों के लिए यह समझना आसान बनाता है कि अगर अमेरिकी नौकरी बाजार मजबूत दिखे तो पॉवेल संभवतः दरें घटाने नहीं देंगे। वहीं यदि आर्थिक मंदी का संकेत मिले तो दर कट की उम्मीद बढ़ जाती है और भारतीय शेयर मार्केट में भी हलचल देख सकते हैं।
एक बात खास तौर पर ध्यान देने वाली है—फेड के क्वांटिटेटिव टाइटेनिंग (QT) प्लान. पॉवेल ने कई बार बताया कि फेड अपने बैंकों को दी हुई अतिरिक्त तरलता को धीरे‑धीरे वापस ले रहा है। इसका असर विश्व बाजार में कम लिक्विडिटी, यानी पैसा कम उपलब्ध होने की स्थिति बनाता है। भारत में यह निवेशकों के पोर्टफ़ोलियो पर दबाव डाल सकता है, खासकर जब विदेशी फंड्स सिक्योरिटीज़ से हट कर अधिक सुरक्षित अमेरिकी ट्रेजरी की ओर जाते हैं।
तो रोज़मर्रा की जिंदगी में पॉवेल का क्या मतलब? अगर आप सोना या रियल एस्टेट जैसे स्थिर संपत्ति में निवेश करते हैं तो फेड के फैसले से कीमतें बदल सकती हैं। यदि डॉलर मजबूत हो, तो सोने का दाम अक्सर गिरता है, जबकि भारतीय रुपये‑डॉलर दर नीचे आती है तो विदेश यात्रा सस्ती लगती है। इसी तरह, अगर RBI फेड की हरकतों के जवाब में ब्याज दर घटाता है, तो बचत पर मिलने वाला इंटरेस्ट कम हो सकता है लेकिन लोन की क़ीमतें घट सकती हैं—घर या कार का लोन लेना आसान हो जाता है।
समाप्ति में कहें तो जेरोम पॉवेल सिर्फ एक अमेरिकी नाम नहीं, बल्कि वैश्विक आर्थिक माहौल के बड़े साजिशकार हैं। उनके हर कदम को समझना भारतियों को अपने पैसे और निवेश के फैसले स्मार्ट बनाने में मदद करता है। इसलिए जब भी आप ख़बरों में “पॉवेल ने कहा…” या “Fed ने दरें बढ़ाई” देखिए, तो तुरंत सोचिए कि इसका असर आपके रुपये, बचत और भविष्य की योजनाओं पर कैसे पड़ेगा।