Shimla में नेपाली श्रमिकों पर चोरी और ड्रगिंग का मामला, परिवार को मिला बड़ा झटका

घटना की रूपरेखा
चिवा गाँव, जुबल, शिमला के सेब बाग में हाल ही में एक ऐसी घटना हुई जो स्थानीय लोगों को हिला कर रख गयी। नेपाली दम्पति, जिसका नाम बताया गया है – कृष्णन और उनकी पत्नी इशा – को सिर्फ चार दिन के लिए बाग में काम करने वाले मौसमी मजदूरों के रूप में रखा गया था। उनका काम था पेड़ों की छंटाई और फसल की देखभाल, लेकिन दिन बाद दिन उन्होंने नीरस काम के साथ एक खतरनाक योजना बनाना शुरू कर दिया।
पोलिस रिपोर्ट के अनुसार, इशा ने शाम को परिवार के लिए तैयार किया गया खाना में ऐसे पदार्थ मिलाये जो तेज़ी से बेहोशी का कारण बनते हैं। इस भोजन को मुख्यतः उशा छजटा, उनकी सास रेशमा छजटा और बाग के रखवाले (मुंशी) ने खाया। तीनों देर अंधेरे में बेहोश हो गये, जिससे दम्पति ने बिना किसी रोके-टोक के घर के अंदर के सोने के गहने, चाँदी के सिक्के और अन्य मूल्यवान सामान उठा लिये।
परिवार की बेटी, जिसने वही भोजन नहीं खाया, ने अगले दिन सुबह अपने माता-पिता के बेहोशी को देखा और तुरंत पिता बलबीर छजटा को फोन किया, जो उस समय उत्तराखण्ड के नेटवार में अपनी बगीचे में काम कर रहे थे। परिवार को तुरंत रोह्रु अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उन्हें एंटीडोट और बेसिक सपोर्ट दिया गया। इलाज के बाद सभी को सुरक्षित रूप से डिस्चार्ज किया गया, लेकिन आधी रात की यह घटना उन्हें हमेशा के लिए बदल कर रख देगी।

प्रतिक्रिया और आगे की कदम
उशा छजटा की बहन, कुमारी मरिशा ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। उन्होंने बताया कि दम्पति को सिर्फ चार दिन पहले ही बाग में लाया गया था और यह लोग स्थानीय पुलिस के साथ पंजीकृत नहीं थे। यह बात सीधी-सीधी स्थानीय लोगों के बीच एक बड़ी चिंता को जन्म देती है – असंरक्षित migrant laborers का नियंत्रण कैसे सुनिश्चित किया जाये?
शिमला पुलिस ने तत्काल केस फाइल किया और दम्पति को पकड़ने के लिये व्यापक सर्च ऑपरेशन शुरू किया। कई पड़ोस में छापेमारी हुई, लेकिन अभी तक उन्हें पकड़ नहीं पाये हैं। इस बीच, स्थानीय समुदाय ने एक केंद्रीकृत ऑनलाइन पंजीकरण प्रणाली की मांग की है, जिससे सभी मौसमी श्रमिकों के दस्तावेज़ीकरण में पारदर्शिता रहे।
बलबीर छजटा ने कहा, "हमारे जैसे छोटे किसान अक्सर असल में श्रमिकों को पंजीकरण नहीं कराते, क्योंकि उन्हें काम जल्दी करना होता है। लेकिन इस तरह की घटनाएँ दिखाती हैं कि इससे हमें बहुत बड़ा जोखिम होता है।" उनका कहना है कि इस घटना के बाद बाग मालिकों को भी कर्मचारियों की पृष्ठभूमि जाँच को सख्त करना चाहिए।
हिमाचल प्रदेश में सेब की खेती एक प्रमुख आर्थिक धारा है, जहाँ हर साल हजारों अस्थायी मजदूर राज्य में आते हैं। कई बार इन कामगारों को भेदभाव या असुरक्षित परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, और इस तरह की घटनाएँ इस समस्या को और उजागर करती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि हर मजदूर को स्थानीय पुलिस या ग्राम सभा के साथ पंजीकृत किया जाये तो न केवल चोरी-चोरी रोकी जा सकेगी, बल्कि इस प्रकार की दुष्प्रचारक घटनाओं का जोखिम कम होगा।
इसी बीच, इस मामले के प्राथमिक साक्ष्य – संदिग्धों द्वारा उपयोग किए गये ड्रगेड भोजन का परीक्षण, चोरी गई चीज़ों की सूची और घर के सुरक्षा कैमरों की फुटेज – पुलिस द्वारा एकत्र किए जा रहे हैं। यदि ये सबूत मजबूत रहे तो न्याय प्रक्रिया तेज़ी से आगे बढ़ेगी।
स्थानीय लोग अभी भी इस अघोर घटना के प्रभाव में हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि जल्द ही हिमाचल प्रदेश के एपी बागों में श्रमिक पंजीकरण का सवाल गंभीरता से लिया जाएगा। यह केस इस बात का प्रमाण है कि सही कानूनी ढाँचा और कड़ी निगरानी के बिना, आम लोगों की सुरक्षा हमेशा जोखिम में रहती है। Shimla चोरी की यह कहानी अब कई क्षेत्रों में बहस का कारण बन चुकी है, और उम्मीद है कि इस परिदृश्य से सीख लेकर भविष्य में ऐसी घटनाएँ नहीं दोहराई जाएँगी।