शरद पूर्णिमा पर क्यों बनाई जाती है खीर: धार्मिक महत्व और स्वास्थ्य लाभ
 अक्तू॰, 16 2024
                                                        अक्तू॰, 16 2024
                            शरद पूर्णिमा का महत्व और उत्पत्ति
शरद पूर्णिमा की कथा और उसकी धार्मिक मान्यताओं का भारतीय संस्कृति में एक अहम स्थान है। प्रत्येक वर्ष, यह त्योहार अश्विन महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो आम तौर पर अधिकतर अक्टूबर महीने में आता है। यह दिन विशेष रूप से मां लक्ष्मी की पूजा के लिए समर्पित होता है, जो समुद्र मंथन के समय उत्पन्न हुई थीं। इस दिन का इतिहास और मान्यता हमें भगवान कृष्ण और गोपियों के अद्वितीय रहस्योद्घाटन 'महा रास' तक पीछे ले जाता है। शरद पूर्णिमा का पर्व न केवल धार्मिक भावनाओं की प्रस्तुतिकरण है, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर भी है जिससे लोग अपनी परंपराओं से जुड़ते हैं।
खीर का धार्मिक और स्वास्थ्य संबंधी महत्व
शरद पूर्णिमा पर खीर बनाने की प्रथा न केवल स्वादिष्टता प्रदान करती है, बल्कि इसके पीछे एक गहन वैज्ञानिक और धार्मिक मान्यता भी छिपी है। चराम्मास के दिन पूर्णिमा की रात चंद्रमा की पूर्णता को वर्णित करते हुए, ऐसा माना जाता है कि यह हमारी सेहत के लिए लाभकारी 'अमृत' फैलाता है। विशेषकर खीर, जिसे चावल, दूध और शक्कर के साथशामिल किया जाता है, को चांदनी रात के नीचे रखकर उसका सेवन करना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इसे अमृत समान माना जाता है और कहा जाता है कि यह रोगों का नाश करता है, प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और दृष्टि में सुधार लाता है।
मां लक्ष्मी के प्रति आस्था और खान-पान की परंपराएं
शरद पूर्णिमा पर खीर बनाने की परंपरा मां लक्ष्मी को भी पसंद है, क्योंकि उन्हें मखाना और दूध से बनी खीर अर्पित की जाती है। मां लक्ष्मी की पूजा विधान का अपना एक विशेष स्थान है, और भारतीय समाज में इसे समृद्धि और धन की देवी के रूप में माना गया है। यह भी विश्वास है कि जो इस रात जागते रहते हैं और मां लक्ष्मी की आराधना करते हैं, उन्हें संपन्नता और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
कोजगरि पूर्णिमा और अन्य परंपराएं
भारत के विभिन्न भागों में, शरद पूर्णिमा को 'कोजगरि पूर्णिमा' के नाम से भी जाना जाता है, जो कि उच्च सतर्कता को इंगित करता है। इस रात लोग पूरी रात जागते रहते हैं और लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं। दक्षिण भारत में, यह नाम इसके सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है, जैसे कि चेतना और जागरूकता की महत्वपूर्णता। लोगों का मानना है कि जो इस रात जागते रहते हैं, उन्हें मां लक्ष्मी का विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसके अलावा, कुछ क्षेत्रों में कुंवारी लड़कियाँ इस दिन विधि-विधान के साथ सूरज और चाँद की आराधना करती हैं, जिससे उन्हें इच्छित जीवन साथी की प्राप्ति हो सके।
संस्कृति और आधुनिक समय में शरद पूर्णिमा का महत्व
शरद पूर्णिमा न केवल धार्मिक आस्था को साक्षात करता है, बल्कि यह सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का प्रतीक भी है। जीवन की बदलती धारा के बावजूद, यह त्योहार मानवीय मूल्यों, परंपराओं और सामाजिक बंधनों को मजबूती प्रदान करता है। बदलते समय में भी, जब वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हम चीजों को समझने का प्रयास करते हैं, यह त्योहार हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है और हमें समृद्धि, स्वास्थ्य और शांति की दिशा में प्रेरित करता है।
