Operation Sindoor के बाद PM मोदी ने बहुदलीय प्रतिनिधिमंडलों से की मुलाकात, आतंकवाद पर भारत का कड़ा संदेश

Operation Sindoor के बाद कूटनीतिक मिशन: भारत का एकजुट संदेश
ऑपरेशन सिंदूर के ठीक बाद नई दिल्ली में पीएम मोदी के घर पर कुछ अलग ही नजारा देखने को मिला। 10 जून 2025 को सात अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधि प्रधानमंत्री से मिलने पहुंचे। इस प्रतिनिधिमंडल में 50 से ज्यादा लोग थे—कुछ संसद में मौजूदा नेता, तो कुछ पूर्व सांसद और अनुभवी राजनयिक। ये लोग एक असामान्य मिशन से लौटे थे: दुनिया के 30 से ज्यादा देशों और यूरोपियन यूनियन में भारत का संदेश ले जाना। मकसद? भारतीय सीमाओं पर आतंकवाद के मुद्दे पर देश की Operation Sindoor के तहत सख्ती को बताना और पाकिस्तान के कश्मीर प्रोपेगेंडा का मुकाबला करना।
इस पूरे अभियान में राजनीतिक मतभेद कहीं नहीं दिखे। एक तरफ बीजेपी के सीनियर नेता रविशंकर प्रसाद और बैजयंत पांडा थे, तो वहीं विपक्ष की तरफ से शशि थरूर (कांग्रेस), संजय झा (जेडीयू), श्रीकांत शिंदे (शिवसेना), कनिमोझी (डीएमके) और सुप्रिया सुले (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी-एसपी) जैसे चेहरे भी पूरी मजबूती के साथ भारत का पक्ष रख रहे थे। ऐसा कम ही होता है जब इतने बड़े स्तर पर विपक्ष और सत्ता पक्ष विदेश नीति पर एक साथ दिखें।
आतंकवाद पर भारत का स्पष्ट रुख और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
इन प्रतिनिधिमंडलों के सदस्यों ने यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, पश्चिम एशिया जैसे इलाकों में जाकर सीधे सरकारों और संसदों से संवाद किया। कहीं प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई, तो कहीं थिंक टैंक और पत्रकारों से आमना-सामना, मुद्दा साफ था—भारत अब आतंकवाद के मसले पर ढुलमुल मूड में नहीं है। उन्होंने दुनिया को बताया कि कश्मीर में शांति लाने की हर कोशिश को पाकिस्तान की साजिशें बिगाड़ देती हैं। इस पूरी कवायद के पीछे साफ मकसद था: पाकिस्तान की ओर से फैलाए जा रहे झूठ को मौके पर ही जवाब देना और भारत की जीरो टॉलरेंस पॉलिसी का तगड़ा संदेश देना।
सदस्यों ने पीएम से मुलाकात के दौरान कई कड़े अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि किस तरह कुछ मुल्कों की मीडिया ने पाकिस्तान का पक्ष बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की कोशिश की और वे कैसे तर्कों के साथ भारत का सच्चा पक्ष सामने लाए। यूरोप में कई सांसदों ने भारतीय प्रतिनिधियों से निजी तौर पर मुलाकात की और कश्मीर में बदलते हालात के बारे में विस्तार से जानकारी ली। कुछ देशों में पाकिस्तान की सुनवाई ना के बराबर दिखी, क्योंकि भारत ने आंकड़े, जमीनी रिपोर्ताज और नागरिकों के अनुभव को सामने रखा।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी इस मिशन की जमकर सराहना की थी। उनका मानना है कि भारत की कूटनीतिक मजबूती ऐसे ही संवादों से बनती है, जहाँ राजनीतिक भेद मिटाकर देश की एक आवाज़ सुनाई देती है।
पुंछ और पहलगाम जैसे इलाकों में हाल ही में हुए आतंकी हमलों के बाद दुनियाभर में यह कड़ा संदेश जरूरी था कि भारत अब बर्दाश्त नहीं करेगा। सही वक्त पर यह अभियान चला, जिससे पाकिस्तान के दावों की हवा निकलती गई।
अब सवाल ये है कि क्या ये साझा कोशिशें भविष्य में भी इसी तरह जारी रहेंगी और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की आवाज और मजबूत बनती रहेगी?