दिल्ली को उच्चतम न्यायालय से राहत की उम्मीद: जून 3 को जल संकट पर सुनवाई

दिल्ली को उच्चतम न्यायालय से राहत की उम्मीद: जून 3 को जल संकट पर सुनवाई जून, 2 2024

दिल्ली को पानी की कमी का सामना

दिल्ली हमेशा से अपने जल संसाधनों के लिए पड़ोसी राज्य हरियाणा पर निर्भर रही है। राजधानी में पानी की किल्लत का मुद्दा कोई नया नहीं है, लेकिन हाल ही में गर्मियों के मौसम में यह संकट और बढ़ गया है। सत्तारूढ़ दिल्ली सरकार ने इस बार इस मुद्दे को सर्वोच्च न्यायालय तक ले जाने का निर्णय लिया है। वे चाहते हैं कि न्यायपालिका हरियाणा को यमुना नदी से अतिरिक्त पानी रिहा करने के निर्देश दे।

1994 का समझौता

1994 में एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ था जिसमें हरियाणा और दिल्ली के बीच जल वितरण के मानक तय किए गए थे। इस समझौते के अनुसार, हरियाणा को दिल्ली को प्रतिदिन 719 मिलियन गैलन पानी यमुना से देना चाहिए। लेकिन, वर्तमान में हरियाणा केवल 550 मिलियन गैलन पानी रिहा कर रहा है, जिससे राजधानी में बड़ी मात्रा में पानी की कमी हो रही है।

यह कमी गर्मियों में और विकराल रूप ले लेती है, जब पानी की आवश्यकता बढ़ जाती है। दिल्ली का जल बोर्ड इस कमी को पूरा करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटकटाने पर मजबूर हो गया है।

सुनवाई का समय

दिल्ली जल बोर्ड द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई 3 जून को होगी। यह सुनवाई इसलिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह न केवल दिल्ली के पानी के मसले को हल कर सकती है बल्कि अन्य राज्यों के बीच संसाधनों के वितरण पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है।

दिल्ली सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह किया है कि वह हरियाणा को निर्देश दे कि वे निर्धारित मात्रा में पानी रिहा करें।

जल संकट की गंभीरता

दिल्ली के जल मंत्री, सत्येंद्र जैन ने यह स्पष्ट किया है कि राजधानी को प्रतिदिन 1,150 मिलियन गैलन पानी की आवश्यकता है। जबकि वर्तमान में उन्हें केवल 960 मिलियन गैलन पानी मिल रहा है, जिससे दिल्लीवासी 190 मिलियन गैलन पानी के अभाव का सामना कर रहे हैं।

इस जल संकट का असर न केवल घरों में पानी की आपूर्ति पर पड़ता है बल्कि नगर निगम की अन्य सेवाओं और औद्योगिक प्रक्रियाओं पर भी इसका गहरा प्रभाव होता है।

हरियाणा का पक्ष

हरियाणा का तर्क है कि वे भी अपने जल संसाधनों की कमी का सामना कर रहे हैं और उन्हें अपने प्रदेश की आवश्यकताओं को भी देखना होता है। हालांकि, दिल्ली सरकार का मानना है कि हरियाणा 1994 के समझौते के तहत बाध्य है और उन्हें दिल्ली को निर्धारित मात्रा में पानी प्रदान करना चाहिए।

दोनों राज्यों के बीच इस जल विवाद का नतीजा कैसे निकलेगा, यह देखने वाली बात होगी। यह मामला केवल कानूनी नहीं है, बल्कि यह जमीनी हकीकत को भी उजागर करता है कि हमारे देश के संसाधनों का वितरण कितना महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दा है।

न्यायालय का रोल

उच्चतम न्यायालय पर इस मसले पर अब बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। उसे यह तय करना होगा कि किस तरह से संसाधनों का न्यायसंगत वितरण किया जाए ताकि दोनों राज्यों की आवश्यकताओं का संतुलन बना रहे। दिल्ली की उम्मीदें अब सर्वोच्च न्यायालय पर टिकी हैं।

इस मामले का निर्णय आने वाले दिनों में स्पष्ट हो जाएगा। तब तक दिल्ली के नागरिकों को इस जल संकट का सामना करते हुए संभावनाओं का इंतजार करना होगा।

14 टिप्पणि

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    indra group

    जून 2, 2024 AT 23:01

    ये सब न्यायालय वाले तो बस दिल्ली के लिए आवाज़ उठाते हैं, लेकिन हरियाणा के किसानों का क्या? वो भी पानी के लिए लड़ रहे हैं। दिल्ली को पानी चाहिए? तो अपने टैंकरों को बंद करो, अपने बगीचों को सूखने दो। ये सब नागरिकता का दुरुपयोग है।

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    sugandha chejara

    जून 3, 2024 AT 03:10

    मुझे लगता है कि इस बार न्यायालय सचमुच कुछ कर सकता है। हरियाणा के साथ बातचीत करने की जगह, अगर हम अपने पानी के उपयोग को बेहतर बनाएं - जैसे वर्षा जल संचयन, रीसायकलिंग - तो ये सब बहुत जल्दी हल हो जाएगा। बस थोड़ा सामूहिक प्रयास चाहिए।

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    DHARAMPREET SINGH

    जून 3, 2024 AT 10:13

    1994 का समझौता? बस एक कागज़ का टुकड़ा है जो अब बेकार हो चुका है। जल संकट का असली कारण तो दिल्ली का अनियंत्रित विकास है - लाखों लोग बस एक जगह घुस गए, और अब पानी का बंटवारा हो रहा है। न्यायालय इसे बर्बर तरीके से हल करने की कोशिश कर रहा है।

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    gauri pallavi

    जून 4, 2024 AT 02:49

    अरे भाई, दिल्ली के लोगों को पानी की कमी है तो भी बस एक टैंकर भेज दो, न्यायालय नहीं बुलाओ। हरियाणा के लोग भी तो इंसान हैं, उनके घरों में भी पानी चाहिए। ये सब बहुत नाटकीय हो गया है।

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    Agam Dua

    जून 5, 2024 AT 10:05

    समझौता? कानून? ये सब बहुत अच्छा है... लेकिन जब एक राज्य के पास 1.15B गैलन की आवश्यकता है और दूसरे के पास केवल 550M है, तो ये सिर्फ एक अनुपात का मुद्दा नहीं, ये एक जनसांख्यिकीय विस्फोट है। दिल्ली का जनसंख्या घनत्व - 11,320/km² - ये किसी नैतिक वितरण के लिए बिल्कुल अनुपयुक्त है।

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    Gaurav Pal

    जून 5, 2024 AT 20:09

    दिल्ली को अपने पानी के लिए न्यायालय जाना पड़ रहा है? ये तो बस एक निष्क्रिय राज्य की लापरवाही है। जब तक दिल्ली सरकार अपने नलों को बंद नहीं करती, तब तक ये सब बस नाटक है। लोग बस टैंकरों पर निर्भर हैं - ये सब बर्बरता है।

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    sreekanth akula

    जून 6, 2024 AT 20:37

    हमारे देश में जल संसाधनों का वितरण एक ऐसा मुद्दा है जो न सिर्फ कानूनी, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक भी है। हरियाणा के लोग अपनी नदियों को अपना धरोहर मानते हैं, और दिल्ली के लोग अपनी जीवन शैली के लिए पानी की मांग करते हैं। ये टकराव तब तक रहेगा जब तक हम इसे एक सामाजिक अनुबंध के रूप में नहीं समझेंगे।

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    Sarvesh Kumar

    जून 8, 2024 AT 00:36

    हरियाणा के लोग अपना पानी बचाने के लिए तैयार हैं? तो दिल्ली के लोगों को भी अपना पानी बचाना होगा। ये सब न्यायालय के आगे लाने की बजाय, दिल्ली सरकार को अपने नागरिकों को शिक्षित करना चाहिए। ये देश का असली संकट है - नागरिकों का जागरूकता का अभाव।

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    Ashish Chopade

    जून 9, 2024 AT 06:25

    इस समय न्यायालय का निर्णय अत्यंत महत्वपूर्ण है। जल संसाधनों का न्यायसंगठित वितरण राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है। दिल्ली के लोगों को अधिकार है - लेकिन इस अधिकार को न्यायपालिका के माध्यम से ही बचाया जा सकता है।

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    Shantanu Garg

    जून 9, 2024 AT 12:40

    हरियाणा भी अपना पानी बचाना चाहता है, और दिल्ली भी। दोनों तरफ से बातचीत होनी चाहिए। न्यायालय को बस एक मध्यस्थ बनना चाहिए।

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    Vikrant Pande

    जून 10, 2024 AT 16:38

    अरे भाई, ये सब न्यायालय के आगे लाने की बात तो बहुत आम है। दिल्ली के लोगों को ये नहीं पता कि वे अपने पानी के लिए अपने घरों में वर्षा जल संचयन क्यों नहीं करते? ये सब बस एक आलसी नागरिकता का नतीजा है। और फिर न्यायालय को बुलाते हैं। बस इतना ही।

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    Indranil Guha

    जून 12, 2024 AT 03:18

    दिल्ली को अपने जल संसाधनों का बर्बादी करने का अधिकार है? नहीं। हरियाणा के लोगों के पानी को बर्बाद करने का कोई अधिकार नहीं है। ये न्यायालय को एक ऐसा निर्णय लेना चाहिए जो देश के भविष्य के लिए आधार बने - न कि दिल्ली के लोगों की लालच को बढ़ाए।

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    srilatha teli

    जून 13, 2024 AT 15:04

    इस जल संकट का समाधान न्यायालय के आगे नहीं, बल्कि हम सबके घरों में शुरू होना चाहिए। वर्षा जल का संचयन, जल का पुनर्चक्रण, और जल के अपव्यय को रोकना - ये सब छोटे कदम हैं जो बड़ा बदलाव ला सकते हैं। दिल्ली के लोगों को बस इस बात का एहसास होना चाहिए कि पानी एक अनंत संसाधन नहीं है।

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    Sohini Dalal

    जून 15, 2024 AT 05:19

    अरे वाह, दिल्ली को न्यायालय से पानी मांगना पड़ रहा है? तो हरियाणा को भी अपने लोगों के लिए न्यायालय जाना चाहिए। ये तो बस एक बड़ा बहस है - जिसमें कोई नहीं जीत रहा।

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