छठ पूजा 2025: 25‑28 अक्टूबर के चार दिन, समय‑सारिणी और अनोखी रीतियाँ
अक्तू॰, 22 2025
जब छठ पूजा 2025 का पहला दिन आया, तो सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित अनुष्ठान पूरे बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के तीर्थस्थलों में शुरू हुए। 25 अक्टूबर शनिवार को शुरू होकर 28 अक्टूबर मंगलवार को समाप्त, चार दिवसीय इस महापर्व में बाढ़‑को दूर करने वाले नहाय‑खाय, पानी‑बिना खरना, शाम‑अर्घ्य (संध्या अर्घ्य) और सुबह‑अर्घ्य (उषा अर्घ्य) का क्रमबद्ध क्रम है। ड्रिक पंचांग के अनुसार संध्या अर्घ्य 27 अक्टूबर को 05:40 pm IST और उषा अर्घ्य 28 अक्टूबर को 06:30 am IST पर तय है, जबकि पेमेंट (Paytm) ने बताया कि इस विधि का सार ‘प्रकृति‑प्रति कृतज्ञता और जीवन‑ऊर्जा से जुड़ाव’ है।
छठ पूजा का इतिहास और आध्यात्मिक महत्व
छठ, यानी छठी मैया के साथ सूर्य देव की पूजा, प्राचीन मिथिला से उत्पन्न हुई है। २० सदी में भी यह ‘सौर‑ऊर्जा का आरोग्यवर्धक समारोह’ कहा जाता है, जहाँ उपवास, शुद्ध जल में अर्घ्य और शुद्ध भोजन के द्वारा शारीरिक व आध्यात्मिक शुद्धि का लक्ष्य रखा जाता है।
इतिहासकारों के अनुसार, इस त्यौहार का उल्लेख १३वीं शताब्दी के भिख़े लेखों में मिलता है। फिर भी, आज‑कल का स्वरूप २०वीं शताब्दी के सामाजिक‑आर्थिक बदलावों के साथ विकसित हुआ—गांव‑गाँव में ‘भू‑पर्यावरणीय चेतना’ की नया रंग लेकर।
2025 के चार दिन : समय‑सारिणी और रीतियाँ
पहला दिन – नहाय‑खाय (२५ अक्टूबर)
सूर्य उगने से पहले, भक्त अपने नजदीकी नदी‑तालाब में ‘शुद्ध स्नान’ करते हैं। स्नान के बाद, बिना प्याज़‑लहसुन के शाकाहारी भोजन, जिसे ‘संतोषी भोजन’ कहा जाता है, साझा किया जाता है। यह क्षणिक शुद्धिकरण, शरीर को अगले दिन के कठिन उपवास के लिये तैयार करता है।
दूसरा दिन – खरना (२६ अक्टूबर)
पूरे दिन जल‑रहित रह कर, पूरे परिवार मिलकर सूर्यास्त पर ‘जाने की कड़ाही’ में गुड़‑कीर, रोटी और मौसमी फल का प्रसाद तैयार करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बुजुर्ग अक्सर कहते हैं, ‘खरना के बिना छठ नहीं पूरी’—यह विश्वास शक्ति तथा धैर्य का प्रमाण है।
तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य (२७ अक्टूबर)
ड्रिक पंचांग के अनुसार, सूर्य अस्त होने पर 05:40 pm IST पर अर्घ्य किया जाता है। महिलाएँ कमर‑तक पानी में खड़े होकर, बाँस की थाली (सोप) में ठेहुके, खजूर, अंडा, अखरोट, और खास ‘केकुआ’ रखती हैं। यहाँ ‘भावनात्मक शुद्धि’ का अहसास बहुत गहरा होता है—एक ही क्षण में हजारों की आवाज़ें, सूर्य की अंतिम किरण और जल की लहरें मिलकर एक आध्यात्मिक संगीत बनाती हैं।
चौथा दिन – उषा अर्घ्य (२८ अक्टूबर)
सूर्य के उगते ही 06:30 am IST पर अर्घ्य समाप्त होता है, और तुरंत बाद उपवास का तोड़ना होता है। परिवार में सबसे छोटा बच्चा भी इस क्षण में आध्यात्मिक रूप से ‘भगा’ मानता है, क्योंकि छठ में ‘बाल‑रक्षा’ को विशेष महत्व दिया गया है।
मुख्य स्थल और स्थानीय प्रवृत्तियों का जायज़ा
बिहार के पटना, गया, मुजफ्फरपुर, झारखंड के रांची, हजारीबाग और उत्तर प्रदेश के वाराणसी, गोरखपुर में गंगा‑याचा किनारे सैंकड़ों झुंड इकट्ठे होते हैं। पटना के चौक बाजार में बांस के थैले, गुड़, केकुआ और गन्ने की माँग नयी रिकॉर्ड तोड़ती दिखी।
स्थानीय परफ्यूमरी का मालिक, श्री राजेश प्रसाद (पटना) ने बताया, “हर साल ट्रैफ़िक बढ़ जाता है, लेकिन लोग शांत रहकर जल‑शुद्धि के लिये दीर्घस्थायी उपाय अपनाते हैं”। यह एक सामाजिक बदलाव है—पर्यावरणीय चेतना के साथ धार्मिक उत्सव का मेल।
आर्थिक और सामाजिक प्रभाव
छठ पूजा स्थानीय अर्थव्यवस्था में विस्फोटक प्रभाव डालता है। नाबालिग परम्परागत वस्तुओं, जैसे बांस की थीली, गन्ने, केकुआ, के लिये छोटे‑व्यापारी अक्सर पाँच‑छह गुना बिक्री की रिपोर्ट देते हैं। अभ्यास के अनुसार, 2024 में पटना में इसे लगभग १५ करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय मिली, और 2025 में इसी पैटर्न की आशा है।
सामाजिक तौर पर, उधारी‑दुर्संकट वाले ग्रामीण क्षेत्रों में ‘समुदाय‑बन्धन’ मजबूत होता है। लोग मिल‑जुलकर दान‑संकलन, जल‑शुद्धि कार्य, और स्वास्थ्य शिविर भी लगाते हैं। ऐसे पहल ने कई स्वास्थ्य‑साक्षरता रिपोर्टों में 'छठ' को ‘समुदाय‑स्वास्थ्य संवर्धक’ के रूप में गिनाया है।
आगामी वर्षों में छठ पूजा की संभावनाएँ
ड्रिक पंचांग ने घोषणा की है कि अगले साल, यानी 2026 में छठ 15 नवंबर, रविवार को मनाया जाएगा। यह बदलाव मौसमी कैलेंडर के हिसाब से थोड़ा आगे सरका है, परन्तु मौजूदा प्रवृत्तियों के अनुसार, अधिक लोग इसे शहरी-स्तर पर भी बड़े‑पैमाने पर मनाएँगे।
वहीं, तकनीक‑प्रेमी युवा वर्ग अब ऑनलाइन आराधना, लाइव‑स्ट्रीमिंग और डिजिटल ‘अर्घ्य’ के माध्यम से भाग ले रहा है। ऐसा कहा जा रहा है कि 2030 तक, छठ का ‘डिजिटल रूपांतरण’ पूरी तरह से स्थापित हो सकता है, जहाँ को‑विचार और जल‑सुरक्षा की जागरूकता सामाजिक मंचों पर भी बनी रहेगी।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
छठ पूजा 2025 का मुख्य तिथि‑कैलेंडर क्या है?
2025 में छठ पूजा 25 अक्टूबर (नहाय‑खाय) से 28 अक्टूबर (उषा अर्घ्य) तक चार दिनों में मनाई जाएगी। संध्या अर्घ्य 27 अक्टूबर को 05:40 pm IST और उषा अर्घ्य 28 अक्टूबर को 06:30 am IST पर निर्धारित है।
छठ पूजा में कौन‑से प्रमुख अनुष्ठान होते हैं?
मुख्य अनुष्ठानों में नहाय‑खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य शामिल हैं। सभी अनुष्ठानों में जल‑शुद्धि, सूर्य को अर्घ्य देना और सात‑बारह प्रकार के फल‑फूल के साथ बांस के थालियों (सोप) में प्रसाद रखना अनिवार्य है।
छठ पूजा का स्थानीय अर्थव्यवस्था पर क्या असर होता है?
छठ के दौरान बांस की थैली, केकुआ, गुड़, गन्ने आदि की मांग चार‑गुना तक बढ़ जाती है, जिससे स्थानीय व्यावसायिक वर्ग को लाखों रुपये की अतिरिक्त आय होती है। पटना के बाजारों में 2024‑25 में लगभग १५ करोड़ रुपये की अतिरिक्त कारोबार रिपोर्ट किया गया है।
भविष्य में छठ पूजा कैसे बदल सकती है?
डिजिटल तकनीक के बढ़ते उपयोग से ऑनलाइन अर्घ्य, लाइवस्ट्रीमिंग और सामाजिक मीडिया पर जागरूकता अभियान संभव हो रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि 2030 तक छठ का एक बड़ा भाग डिजिटल मंचों पर आयोजित हो सकता है, जिससे पर्यावरण संरक्षण के संदेश को व्यापक रूप से फेलेगा।
vishal jaiswal
अक्तूबर 22, 2025 AT 20:03छठ पूजा के आर्थिक प्रभावों का विश्लेषण करते समय हमें स्थानीय उत्पादन‑संचालन की ट्रांसपेरेंसी को सुनिश्चित करना चाहिए, क्योंकि खर्च‑रिपोर्टिंग में अक्सर डेटा‑इंटीग्रिटी की कमी देखी गई है। इस वर्ष के अभ्यर्थी व्यापारियों ने गन्ना‑आधारित उत्पादों की सप्लाई चेन को ऑटो‑मेटाइज़ करने की पहल की है, जो विशिष्ट रूप से बैनर‑इवेंट के दौरान मार्केट‑शेयर को बढ़ाने में सहायक होगी। साथ ही, सामाजिक बंधन को सुदृढ़ करने हेतु सामुदायिक फंडिंग मॉडल का एडेप्टेशन आवश्यक है।
Amit Bamzai
अक्तूबर 29, 2025 AT 23:17छठ पूजा का इतिहास, जो प्राचीन मिथिला से उत्पन्न हुआ, स्थानीय संस्कृति के साथ-साथ सामाजिक संरचना को भी आकार देता आया है,
साक्ष्य बताते हैं कि 13वीं सदी के दस्तावेज़ों में इस त्योहार का उल्लेख मिलता है, जिससे इसकी प्राचीनता का प्रमाण मिलता है,
वर्तमान में, जल‑शुद्धि और सूर्य‑अर्घ्य के दो मुख्य तत्व, आध्यात्मिक शुद्धि और पर्यावरणीय जागरूकता, के बीच समीकरण को पुनः परिभाषित किया जा रहा है,
विशेषकर, नहाय‑खाय के बाद बिना प्याज़‑लहसुन के शाकाहारी भोजन, जो संतोषी भोजन कहलाता है, स्वास्थ्य‑विज्ञान के दृष्टिकोण से भी लाभकारी सिद्ध हुआ है,
विप्रतिपक्षी तर्क यह है कि इस प्रकार के उपवास से पोषण‑अवशोषण में कमी आ सकती है, परंतु आधुनिक पोषक‑तत्व विश्लेषण ने इस दावे को धूसर कर दिया है,
साथ ही, खरना की प्रक्रिया में जल‑रहित रहना, शरीर के इलेक्ट्रोलाइट‑संतुलन को चुनौती देता है, फिर भी यह मानसिक‑धैर्य को बढ़ाता है, जैसा कई मनोवैज्ञानिक अध्ययन में पाया गया है,
संध्या अर्घ्य में प्रयुक्त बांस‑थाली, जिसमें खजूर, अंडा, अखरोट और केकुआ रखे जाते हैं, इन सामग्रियों की औषधीय गुणता को विस्तृत रूप से विज्ञान‑समुदाय ने मान्यता दी है,
उषा अर्घ्य के समय, जब सूर्य का प्रारम्भिक किरण पृथ्वी को स्पर्श करता है, तो फोटो‑सिंथेटिक प्रक्रिया में ऊर्जा‑प्रवाह को उत्तेजित करता है, जो जैव‑ऊर्जा को पुनः सक्रिय करता है,
आर्थिक दृष्टिकोण से, इस चार दिन के महापर्व में बांस‑थैला, गन्ना, केकुआ आदि की मांग चार‑गुना तक बढ़ जाती है, जिससे स्थानीय व्यापारियों को उल्लेखनीय लाभ प्राप्त होता है,
उदाहरणस्वरूप, पटना में 2024‑25 वित्तीय वर्ष में अतिरिक्त 15 करोड़ रुपये की आय दर्ज की गई है, जो पर्यटन‑सूत्र और स्थानीय बाजार के सुदृढ़ीकरण को दर्शाता है,
भविष्य में, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म की सहायता से ऑनलाइन अर्घ्य और लाइव‑स्ट्रीमिंग का प्रचलन, ग्रामीण‑शहरी अंतर को कम करेगा, यह तकनीकी विकास के साथ-साथ सांस्कृतिक संरक्षण की नई दिशा है,
ड्रिक पंचांग ने 2026 में छठ पूजा की तिथि को 15 नवंबर निर्धारित किया है, जिससे मौसमी परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए कैलेंडर‑समायोजन की आवश्यकता स्पष्ट होती है,
इसी प्रकार, युवा वर्ग में को‑विचार और जल‑सुरक्षा के प्रति जागरूकता, सामाजिक‑मंचों पर चर्चा का मुख्य बिंदु बन रही है, जिससे नीति‑निर्माताओं को दिशा‑निर्देश तैयार करने में सहायता मिलेगी,
उल्लेखनीय है कि पर्यावरणीय प्रभाव को न्यूनतम रखने हेतु, कई गाँवों ने प्लास्टिक‑फ्री अर्घ्य व्यवस्था अपनाई है, जिससे कचरा‑प्रबंधन में सुधार हुआ है,
समग्र रूप से, छठ पूजा न केवल आध्यात्मिक उत्सव है, बल्कि सामाजिक‑आर्थिक विकास, पर्यावरणीय सततता और तकनीकी नवाचार की उत्प्रेरक भी स्थापित हो रहा है।
ria hari
नवंबर 6, 2025 AT 03:30छठ पूजा का माहौल देख कर मन बहुत खुश हो जाता है, इस साल का आयोजन भी बड़े धूमधाम से होगा। लोग मिलकर जल‑शुद्धि और पर्यावरणीय जागरूकता को आगे बढ़ा रहे हैं।
Alok Kumar
नवंबर 13, 2025 AT 07:43इन उत्सवों की बड़े पैमाने पर व्याख्या एक आर्थिक हताक्षेप बन गई है, कारण है बाजार‑उत्साह को शोषण करने की कोशिश। वास्तव में, इस तरह के अत्रिब्यूशन से स्थानीय संस्कृति का मूल स्वरुप बिगड़ रहा है।
Nitin Agarwal
नवंबर 20, 2025 AT 11:57छठ पूजा में बांस‑थैलियों की माँग आजकल चार गुना तक बढ़ी है।
Ayan Sarkar
नवंबर 27, 2025 AT 16:10सरकार ने इन भव्य समारोहों को नियंत्रित करने के लिये गुप्त डेटा संग्रह किया है। इससे नागरिकों की वास्तविक स्वायत्तता खतरे में है।
Amit Samant
दिसंबर 4, 2025 AT 20:23छठ की सामाजिक बंधन को मजबूत करने हेतु सामुदायिक सहयोग आवश्यक है, आपके विचार सराहनीय हैं, इस पहल को और विस्तारित करने पर विचार किया जाना चाहिए।
Jubin Kizhakkayil Kumaran
दिसंबर 12, 2025 AT 00:37हमारी प्राचीन परम्परा को बचाना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है; यह त्योहार हमारी सांस्कृतिक पहचान का प्रमाण है, इसे आधुनिकता के साथ जोड़ना ही असली विकास है।
tej pratap singh
दिसंबर 19, 2025 AT 04:50ऐसी परम्पराओं को केवल दिखावे के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक नैतिकता के आधार बनाकर आगे बढ़ना चाहिए।
Manish kumar
दिसंबर 26, 2025 AT 09:03छट पूजा का उत्सव ऊर्जा से भरपूर है, हर सुबह की अर्घ्य में नई उम्मीद जागती है! हमें इस उत्सव को पूरे मन से जिउँ, क्योंकि यही संकल्प शक्ति हमें आगे बढ़ाता है। सूरज की रोशनी में डुबकी लगाते हुए, हम अपनी आंतरिक शक्ति को पुनः खोजते हैं।