
श में यदि नेताजी किसी के आगे लगता है तो वो सिर्फ सुभाष चंद्र बोस ही हैं। यहाँ इन्ही नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी व उनसे जुडी रोचक कहानियाँ व वृतांत प्रस्तुत है। तो आइये जानते है – Interesting Stories of Netaji & Subhash Chandra Bose Biography in Hindi
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी
23 जनवरी 1897 को नेताजी का जन्म ओडिशा राज्य के कटक शहर में एक कायस्थ फैमिली में हुआ। उनके पिताजी जानकीनाथ बोस और माँ प्रभावती थी। ये दोनों ही एक धनाढ्य परिवार से थे। पिता जानकीनाथ मशहूर अधिवक्ता थे। तथा बाद में वे बंगाल से विधायक भी बने। सुभाष चंद्र 14 भाई बहन थे जिनमें सुभाष चंद्र बोस 9 वे थे। सुभाष चंद्र बोस को अपने बड़े भाई शरतचंद्र से काफी लगाव था। वे उनसे अपने मन की बात शेयर किया करते थे।
सुभाष की प्राइमरी शिक्षा कटक के प्रोटेस्टैंट स्कूल में हुई तथा उच्च शिक्षा के लिए 1909 में उन्होंने रेवेनशा कॉलेजियट स्कूल में दाखिला लिया। 1915 में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर 1916 में वे प्रेसीडेन्सी कॉलेज में दर्शनशास्त्र विषय में BA के विद्यार्थी बन गए। इस दौरान वे वहां की राजनीती में संलग्न रहे। उन पर इसके लिए परीक्षा सम्बन्धी प्रतिबन्ध भी लगे।
सुभाष चंद्र बोस किन्तु एक मेधावी छात्र थे उन्होंने1919 में BA ओनर्स फर्स्ट डिवीज़न से पास की। और सम्पूर्ण कलकत्ता विश्विद्यालय में वह दूसरा स्थान लेकर आये। उनके पिता जानकीनाथ बोस चाहते थे कि वे ICS बने। सुभाष इस विषय में असमंजस में थे। उन्होंने इस विषय पर पूरी रात भर सोचा और फिर फैसला लिया कि वे ICS की परीक्षा पास करेंगे और वे फिर 15 सितम्बर 1919 को इंग्लैंड चले गए। वहां उन्होंने खूब मन लगाकर पढाई की और 1920 में वरीयता सूची में चतुर्थ स्थान के साथ वे पास हो गए।
सुभाष चंद्र बोस बचपन से ही स्वामी विवेकानंद और अरविन्द घोष के जीवन से प्रभावित थे। उन्होंने अपने मन की बात अपने बड़े भाई शरत चंद्र को बताई। उन्होंने कहा कि वे ICS बनकर अंग्रेजों की गुलामी नहीं कर पाएंगे। उनका जीवन देश को समर्पित होगा। उनकी माँ और पूरे परिवार ने इस पर गर्व व्यक्त किया।
Subhash Chandra Bose Biography in Hindi
सुभाष चंद्र बोस का स्वतंत्रता संग्राम में प्रवेश
सुभाष चंद्र बोस उस समय देशबंधु चितरंजन दास से काफी प्रभावित थे। वे गाँधी जी मिलने के बाद देश बंधु चितंरजन के साथ स्वतंत्रता अभियान में लग गे। उन्होंने 1922 में कांग्रेस के अंतर्गत दास बाबू के साथ मिलकर एक स्वराज पार्टी की स्थापना की। इस पार्टी द्वारा चितरंजन दास ने कोलकाता महापौर का चुनाव जीता। चितरंजन दास ने सुभाष चंद्र बोस को कोलकाता महापालिका का प्रमुख कार्यकारी अधिकारी बनाया। सुभाष चंद्र बोस ने कोलकाता में सभी अंग्रेजी नामों को बदलकर भारतीय नाम में परिवर्तित कर दिया।
सुभाष चंद्र बोस ने जवाहर लाल नेहरू के साथ मिलकर इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की। 1927 में जब साइमन कमीशन भारत आया तो नेताजी के नेतृत्व में साइमन कमीशन को काले झंडे दिखाए गए। उस वक्त गाँधी जी ने साइमन कमीशन से डोमिनियन स्टेटस की मांग की। जबकि सुभाष चंद्र बोस व जवाहर ने पूर्ण स्वराज की इच्छा जाहिर की।
सुभाष चंद्र बोस ने अपनी जिद पूरी करते हुए 26 जनवरी 1931 को कलकत्ता में राष्ट्र ध्वज पहराया और एक विशाल मोर्चे का नेतृत्व किया। इस दौरान अंग्रेजों ने इन पर लाठी बरसाई और सुभाष चंद्र बोस को जेल भेज दिया गया। गाँधी जी ने तब इरविन समझौते के तहत सुभाष चंद्र बोस सहित कहीं क्रांतिकारियों को अंग्रेजों की गिरफ्त से बाहर निकाला। किन्तु उन्होंने भगत सिंह को बाहर निकालने को लेकर हाथ खड़े कर दिए। इस पर सुभाष चंद्र बोस गाँधी जी से काफी नाराज हुए।
नेताजी को 11 बार कारावास हुआ। प्रथम बार उन्हें गोपीनाथ मुंडे के मौत पर शौक व्यक्त करने पर संदेह के आधार पर किन्तु तपेदिक होने और भयंकर बीमार होने पर रिहा कर दिया। 1930 में कोलकाता के महापौर बने 1932 में फिर जेल और वहां से यूरोप भेज दिया।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की कहानी
नेताजी का यूरोप प्रवास –
सुभास चंद्र बोस जब अंग्रेजों द्वारा यूरोप भेज दिए गए तो वह वहां इटली के ने मुसोलिन से मिले। वहां मुसोलिन ने नेताजी को समय आने पर सहायता करने का वचन दिया। नेताजी से सभी इटालियन नेता काफी प्रभावित थे। वहीँ आयरलैंड के नेता डी वलेरा से इनकी मुलाक़ात हुई और इनके अच्छे फ्रेंड बन गए।
यूरोप में सुभाष का परिचय सरदार पटेल के बड़े भाई विट्ठल पटेल से हुई। विट्ठल पटेल और सुभाष चंद्र बोस ने गाँधी जी के नेतृत्व की घोर निंदा की। विशेषकर भगत सिंह की फांसी को लेकर। इसे बोस पटेल विश्लेषण के नाम से जाना जाता है। विट्ठल अपने अंतिम दिनों में बीमार पड़े और उन्होंने जाते जाते अपनी सम्पति सुभाष चंद्र बोस के नाम कर दी।
विट्ठल पटेल के छोटे भाई सरदार वल्लभ भाई पटेल ने वसीयत को अस्वीकार कर दिया और मुकदमा जीतकर सम्पूर्ण सम्पति गाँधी जी की हरिजन सेवा के कार्य को भेंट कर दी। 1934 में पिताजी के गंभीर बीमार होने की खबर पाकर सुभाष चंद्र बोस यूरोप से वापिस भारत आये। उस यात्रा के दौरान ही उनके पिता का देहांत भी होगा। भारत आने पर अंग्रेजों ने फिर से उन्हें गिरफ्तार कर लिया और फिर यूरोप भेज दिया।

यूरोप प्रवास के दौरान सुभाष चंद्र बोस को एक इंग्लिश ट्रांसलेटर व टाइपिस्ट की जरूरत थी। और उनकी मुलाक़ात आस्ट्रिया में एमिली शेंकल से हुआ हुई। सुभाष जी को कुछ किताबें व लेख छपवाने थे। इस दौरान दोनों करीब आये और दोनों में प्यार हो गया। बाद में हिन्दू रीती से सुभाष चंद्र बोस एमिली के साथ वैवाहिक बंधन में बंध गए। इनके एक पुत्री हुई जिसका नाम अनीता बोस रखा गया। अनीता बोस पाफ आज भी ज़िंदा हैं। जब कभी अवसर मिलता है तो वह भारत में अपने पिता के परिवार से मिलने आ जाती है।
Netaji Subhash Chandra Bose Life Story in Hindi
कांग्रेस व गाँधी जी से रिश्ते –
इससे पहले 1938 में हरिपुरा में कांग्रेस अधिवेशन के दौरान सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। सुभाष ने वहां एक जबरदस्त भाषण दिया था ऐसा भाषण शायद किसी ने कभी कांग्रेस अधिवेशन में दिया हो। द्वितीय युद्ध के देखते हुए सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता अभियान को तेज करना चाहते थे। किन्तु गाँधी जी इसके पक्ष में नहीं थे। और इसको लेकर गाँधी से सुभाष जी का विवाद रहा। गाँधी जी कांग्रेस अध्यक्ष पद से भी सुभाष चंद्र बोस को हटाना चाहते थे।
इस कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए गाँधी जी पट्टाभि सीतारमैया का नाम सुझाया। किन्तु बहुत से ऐसे कांग्रेस सदस्य थे जो सुभाष चंद्र बोस के पक्ष में थे रविंद्र नाथ ठाकुर ने भी पत्र लिखकर सुभाष को कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर बने रहने की बात कही।
इस विरोधाभास के लिए मतदान करना तय हुआ। सबने सोचा कि गाँधी जी सितारमैय्या को समर्थन मिलने से वे आसानी से जीत जायेंगे। किन्तु इसमें सुभाष को 1580 वोट तथा 1377 वोट पट्टाभि सीतारमैया को मिले। और सुभाष चंद्र बोस इस तरह 203 वोटों से विजयी हुए। किन्तु स्वास्थ्य ख़राब होने और निरंतर विरोधाभास के कारण 1939 को सुभाष ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।
3 मई 1939 को कांग्रेस के अंदर ही सुभाष चंद्र बोस ने फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की। इस पर सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस से बाहर कर दिया गया। फॉरवर्ड ब्लॉक इसके बाद एक स्वतंत्र पार्टी बन गई और फॉरवर्ड ब्लॉक ने साफ कर दिया। कि द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता अभियान को तेज करेगी।
Netaji Subhash Chandra Bose Life Story in Hindi | नेताजी सुभाष चंद्र बोस की लाइफ स्टोरी
दूसरे ही वर्ष कलकत्ता में गुलामी के प्रतीक हालवेट स्तम्भ रातों रात फॉरवर्ड ब्लॉक के नेताओं ने धराशाही कर दिया और इस घटना के पश्चात सुभाष चंद्र बोस व फॉरवर्ड ब्लॉक के अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। सुभाष चंद्र बोस द्वितीय विश्व युद्ध के अवसर को गंवाना नहीं चाहते थे। उन्होंने जेल में ही आमरण अनशन शुरू कर दिया। उनकी तबियतबिगड़ती देखकर अंग्रेज सरकार ने उनको रिहा कर दिया किन्तु उनको घर में नजर बंद कर दिया।
सुभाष चंद्र बोस की लाइफ स्टोरी
नजरबंदी के बाद सुभाष का करिश्माई अभियान –
सुभाष चंद्र बोस को जब घर में नजर बंद कर दिया तो नेताजी 16 जनवरी 1941 को अंग्रेज पुलिस को चकमा देते हुए पठान मोहम्मद जियाउद्दीन के वेश में घर से निकल गए। कोलकाता से उनके भतीजे ने उनको गोमोह पहुंचा दिया। गोमोह से फ्रंटियर मेल द्वारा वो पेशावर पहुंचे।
Netaji Subhash Chandra Bose Life Story in Hindi | नेताजी सुभाष चंद्र बोस की लाइफ स्टोरी
वहां फॉरवर्ड ब्लॉक के सहकारी मियां अकबर शाह मिले। उन्होंने उनकी मुलाकात किसान पार्टी के नेता भगतराम से करवाई। भगतराम तलवार पठान के साथ उनके गूंगे बहरे चाचा के रूप में पहाड़ियों से पैदल चलते हुए नेताजी पेशावर से काबुल पहुंचे।
सुभाष चंद्र बोस काबुल में रुसी दूतावास में प्रवेश चाहते थे। किन्तु वे इसमें असफल रहे। इसके बाद उन्होंने जर्मनी व इटली के दूतावास में प्रयास किया। और इटालियन दूतावास में उनको प्रवेश मिल गया। वहां से आर्जेण्टो मैजेंटा नामक इटालियन व्यक्ति बनकर सुभाष काबुल से निकल मास्को और फिर वहां ज़र्मनी की राजधानी बर्लिन पहुंचे।

ज़र्मनी में वे कही नेताओ से मिले सभी उनसे काफी प्रभावित हुए। वहां फिर वह एडम फॉन ट्रॉट नाम के एक मंत्री के घनिष्ट मित्र भी बने। अडोल्फ हिटलर से भी नेताजी की मुलाकात हुई किन्तु हिटलर की भारत में कोई रूचि नहीं थी।
Netaji Subhash Chandra Bose Life Story in Hindi | नेताजी सुभाष चंद्र बोस की लाइफ स्टोरी
ज़र्मनी से पनडुब्बी के द्वारा सुभाष चन्द्र बोस पूर्वी एशिया की ओर निकल गए। पनडुब्बी में आबिद हसन सफरानी नाम एक मित्र उनके साथ था। वह ज़र्मन पनडुब्बी उन्हें हिंदमहासागर में मेडागास्कर तक लेकर गई। वहां वो दोनों समुद्र में तैरकर जापानी पनडुब्बी तक पहुंचे। यह जापानी पनडुब्बी उन्हें इंडोनेशिया के पादांग बंदरगाह तक पहुंचाकर आई। इंडोनेशिया से फिर वह सिंगापुर की ओर निकल गए। यह पूरा सफर सुभाष चंद्र बोस के लिए बड़ा ही खतरनाक रहा। कहीं तरह के रूप उनको इस दौरान लेने पड़े। वो एक प्रकार के बहरूपिया बन गए।
Subhash Chandra Bose Biography in Hindi
सुभाष चन्द्र बोस के पूर्वी एशिया में अभियान –
सिंगापुर में सुभाष चंद्र बोस ने रास बिहारी बोस से भारतीय स्वतंत्रता परिषद् का नेतृत्व संभाला। और उन्होंने ख़ुशी ख़ुशी यह जिम्मेदारी सुभाष को दी।
जापानी प्रधानमंत्री हिदेकी तोजो नेताजी की वाककला और चातुर्य से काफी प्रभावित थे। उन्होंने जापान की तरफ से भारत की सहायता का आश्वासन दिया। उसके बाद नेताजी ने जापान की डायट में भाषण दिया। जो काफी प्रभावशाली था और जापानी डायट के सदस्य नेताजी के मुरीद हो गए।
21 अक्टूबर 1943 को आज़ाद हिन्द फ़ौज की स्थापना हुई। आज़ाद हिन्द फौज में अंग्रेजों की तरफ से जापानीयों द्वारा युद्ध में पकडे गए भारतीय युद्ध बंदियों को शामिल किया गया। साथ सुभाष चन्द्र बोस ने महिलाओं के लिए झाँसी की रानी रेजिमेंट बनाई। वहां उन्होंने एक जबरदस्त भाषण दिया और कहा – “तु मुझे खून दो – मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा”
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानी सेना व आज़ाद हिन्द फ़ौज की संयुक्त सेना ने अंडमान निकोबार द्वीप को अंग्रेजों से मुक्त करवा लिया। इनको सुभाष चंद्र बोस ने शहीद द्वीप और स्वराज द्वीप नाम दिया।
6 जुलाई 1944 को सुभाष चंद्र बोस ने गाँधी जी को सम्भोधित करते हुए एक भाषण दिया और गाँधी जी को इसके बारे में सोचना दी। गाँधी को राष्ट्रपिता शब्द से सुभाष चंद्र बोस ने ही प्रथम बार पुकारा था।
Netaji Subhash Chandra Bose Life Story in Hindi | नेताजी सुभाष चंद्र बोस की लाइफ स्टोरी
सुभाष चंद्र बोस की रहस्यमी मृत्यु –
जापान की हार द्वितीय युद्ध में हार के बाद अब सुभाष को दूसरा रास्ता खोजना था। इसके लिए उन्होंने रूस से सहायता मांगना उचित लगा। 18 जुलाई 1945 को इसके लिए उन्होंने जापान से उड़ान भरी। किन्तु रास्ते में प्लेन लापता हो गया। फिर वो कभी किसी को दिखाई नहीं दिए। 13 अगस्त 1945 को टोकियो रेडिओ ने उनके प्लेन दुर्घटनाग्रस्त में मरने की सूचना दी।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत के रहस्य आज भी रहस्य ही बने रहे। कभी किसी गवर्नमेंट ने इसके लिए कोई प्रयास नहीं किए। इस बारे में कहीं अफवाहें देश के सामने आई। देश के अलग अगल हिस्सों में उनको देखने का दावा किया गया। फैजाबाद में उनके गुमनामी बाबा के रूप में किसी ने होने की बात कही। तो किसी ने छत्तीसगढ़ में उनको देखा। Netaji Subhash Chandra Bose Life Story in Hindi | नेताजी सुभाष चंद्र बोस की
1956 व 77 दोनों बार के जांच आयोग ने यही बताया कि नेताजी की मृत्यु विमान दुर्घटना में ही हुई है किन्तु वे कभी यह साबित नहीं कर पाए कि फिर उनके मरने के बाद उनकी लाश का अंतिम संस्कार कहाँ किया और उनकी अस्थियां अभी कहाँ है। Netaji Subhash Chandra Bose Biography in Hindi | नेताजी
भारत सरकार ने 1999 मनोज मुखर्जी के नेतृत्व में दूसरा आयोग नेताजी की जांच के लिए बनाया और ताइवान सरकार ने उनसे कहा कि ताइवान में कभी कोई विमान हादसा हुआ ही नहीं। 2005 को इस रिपोर्ट को भारत सरकार के सामने प्रस्तुत भी किया गया। किन्तु इसे अस्वीकार कर दिया गया। Netaji Subhash Chandra Bose Life Story in Hindi | नेताजी सुभाष चंद्र बोस की लाइफ स्टोरी
भारत की आज़ादी पर नेताजी के प्रयासों के दूरगामी परिणाम हुए। अंग्रेजों एक समझ आ गई थी कि अब वे भारत को ज्यादा समय तक ताकत के दम पर अपना गुलाम बनाकर नहीं रख सकते। उन्होंने नेताजी का लोहा देखा था।
