प्रागैतिहासिक काल

प्रागैतिहासिक काल

प्रागैतिहासिक काल(प्राक् + इतिहास) अर्थात् इस काल का इतिहास पूर्णतः पुरातात्विक साधनों पर निर्भर है। इस काल का कोई लिखित साधन उपलब्ध नहीं है, क्योंकि मानव का जीवन अपेक्षाकृत असभ्य एवं बर्बर था ।

मानव सभ्यता के इस प्रारम्भिक काल को सुविधानुसार तीन भागों में बाँटा गया है—

(A) पुरापाषाण काल (Paleolithic Age),

(B) मध्य पाषाण काल (Mesolithic Age),

(C) नव पाषाण काल (Neolithic Age) 

(A) पुरापाषाण काल :-

पुरापाषाण काल उपकरणों पर आधारित पुरापाषाण कालीन संस्कृति के अवशेष सोहन नदी घाटी, बेलन नदी घाटी तथा नर्मदा नदी घाटी एवं भोपाल के पास भीमबेटका नामक स्थान से चित्रित शैलाश्रयों तथा अनेक चित्रित गुफाओं से प्राप्त हुआ है। इस काल में हैण्ड-ऐक्स, क्लीवर और स्क्रैपर आदि विशिष्ट यन्त्र प्राप्त हुए हैं।

 

(B) मध्य पाषाण काल :-

इस काल में प्रयुक्त होने वाले उपकरण बहुत छोटे होते थे इसलिए इन्हें ‘माइक्रोलिथ ‘ कहते हैं। इस काल में मध्य प्रदेश में आदमगढ़ और राजस्थान में बागोर से पशुपालन के प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। इस काल में मानव की अस्थियों का पहला प्रारूप प्रतापगढ़ (उ. प्र.) के सराय नाहर तथा महदहा नामक स्थान से प्राप्त हुआ है।

 

(C) नवपाषाण काल :-

नवपाषाण युगीन प्राचीनतम बस्ती पाकिस्तान में स्थित बलूचिस्तान प्रान्त में मेहरगढ़ में है। मेहरगढ़ में कृषि के प्राचीनतम साक्ष्य मिले हैं। नवपाषाण काल में बुर्जहोम एवं गुफकराल (जो कश्मीर प्रान्त में स्थित हैं) से अनेक गर्तावास (Pit Dwelling, गड्ढाघर), अनेक प्रकार के मृद्भाण्ड एवं प्रस्तर तथा हड्डी के अनेक औजार प्राप्त हुए हैं।बुर्जहोम से प्राप्त कब्रों में पालतू कुत्तों को मालिक के साथ दफनाया जाता था ।

 

Note Point :- 

  1. चिराँद (बिहार) नामक नवपाषाण कालीन पुरास्थल एकमात्र ऐसा पुरास्थल है, जहाँ से प्रचुर मात्रा में हड्डी के उपकरण पाये गये हैं। जो मुख्य रूप से हिरण के सींगों  के हैं।

  2. उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद के निकट कोल्डिहवा एकमात्र ऐसा नवपाषाणिक पुरास्थल है जहाँ से चावल का प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त हुआ है।

  3. नवपाषाणिक पुरास्थल मेहरगढ़ से कृषि के प्राचीनतम साक्ष्य एवं नवपाषाणिक प्राचीनतम बस्ती एवं कच्चे घरों के साक्ष्य मिले हैं।

 

सिन्धु सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता :-

सर्वप्रथम चार्ल्स मौसान ने 1826 ई. में हड़प्पा टीले के बारे में जानकारी दी थी। सर जॉन मार्शल ने सर्वप्रथम इसे सिन्धु सभ्यता का नाम दिया। सन् 1921 ई. में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक सर जॉन मार्शल के निर्देशन में राय बहादुर दयाराम साहनी ने पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान) के माण्टगोमरी जिले में रावी नदी के तट पर स्थित हड़प्पा का अन्वेषण किया। इस सभ्यता का सबसे पूर्वी पुरास्थल आलमगीरपुर (उ. प्र. ) पश्चिमी पुरास्थल सुत्कागेण्डो ( बलूचिस्तान), उत्तरी पुरास्थल माँडा (जम्मू) तथा दक्षिणी पुरास्थल दैमाबाद (महाराष्ट्र हैं।

Note  Point :- 

  • स्टुअर्ट पिग्गट ने हड़प्पा और मोहनजोदड़ो को सिन्धु सभ्यता की जुड़वाँ राजधानियाँ बताया है।

हड़प्पा के सामान्य आवास क्षेत्र के दक्षिण में एक कब्रिस्तान स्थित है जिसे समाधि आर-37 नाम दिया गया है। हड़प्पा से प्राप्त बर्तन पर स्त्री के गर्भ से निकला हुआ पौधा, पीतल का बना इक्का गाड़ी तथा गेहूँ और जौ के दाने के अवशेष प्राप्त हुए हैं। पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त के लरकाना जिले में सिन्धु नदी के दाहिने तट पर स्थित मोहनजोदड़ो का उत्खनन 1922 ई. में राखालदास बनर्जी ने करवाया।

 

सिन्धु-सरस्वती सभ्यता की विशेषताएँ – Sindhu Ghati Sabhyata Question

(अ) नगर नियोजन- 

सिन्धु-सरस्वती सभ्यता के विकसित और उन्नत स्तर को प्रकट करने वाले अवशेषों में सबसे महत्वपूर्ण अवशेष इस सभ्यता से सम्बंधित नगरों के है। ऐसे नगरावशेषों में हड़प्पा व मोहनजोदड़ो (दोनों अब पाकिस्तान में) कालीबंगा (राजस्थान) राखीगढी (हरियाणा) तथा धोलावीरा लोथल (गुजरात) के अवशेष अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

इन नगरों के अवशेषों से यह तथ्य भी उद्घाटित होता है कि सिन्धु-सरस्वती सभ्यता काल के भारतवासी पहले योजना बनाकर अपने नगर और नगरों में निर्मित किए जाने वाले भवनों व आवास का निर्माण करते थे। उनका भवन निर्माण कला सम्बंधी ज्ञान आधुनिक स्थापत्य अभियांत्रिकी (सिविल इंजीनियरिंग) के स्तर का था।

(i) नगर की आवास योजना-

 सिन्धु- सरस्वती सभ्यता के नगरों की सुव्यवस्थित सड़क प्रणाली परिणामस्वरूप स्वतः नगरों की आवास योजना में एक व्यवस्था उत्पन्न हो गयी थी और नगर कई खण्डों और मोहल्लों में विभक्त होकर सुनियोजित स्वरूप में उभर गए थे। सामान्यतया प्रत्येक मकान में बीच में खुला आंगन रखा जाता था और आँगन के चारों तरफ कमरे बनाए जाते थे। लगभग सभी मकानों में पानी रखने के फिरोने या परेंडे, शौचालय और स्नानघर अलग से निर्मित होते थे।

(ii) सड़क व्यवस्थाः-

 सिन्धु-सरस्वती सभ्यता से सम्बद्ध नगरों की सड़कें पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण की तरफ सीधी समानान्तर निर्मित की गयी थी। सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती थी, जहाँ.. चौराहे बने हुए थे। नगरों की मुख्य और बड़ी सड़क सामान्यतया 10 मीटर, छोटी सड़कें 5 मीटर तथा गलियाँ एक से दो मीटर तक चौड़ी होती थी। सड़कों के किनारों पर स्थान-स्थान पर कूड़ा-कचरा डालने के लिये कूड़ादान रखे रहते थे।

(iii) नगर की सफाई, जल निकास प्रणाली और स्वच्छता का प्रबन्धः- 

सिन्धु-सरस्वती सभ्यता से सम्बंधित नगरों और नगरों के मकानों में स्वच्छता और सफाई की समुचित व्यवस्था देखने को मिलती है। नगरों की गलियों, सड़कों और मुख्य सड़कों पर बनी छोटी-बड़ी नालियों और गटरों से सहज में ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि मकानों, मोहल्ला और पूरे नगर से गन्दा पानी बाहर निकालने की समुचित व्यवस्था थी।

रोजमर्रा का कूड़ा -कचरा डालने के लिए सड़कों पर जगह-जगह कूडापा रखे जाते थे। सिन्धु-सरस्वती सभ्यता के नगरों में निजी मकानों एवं नगरों में सार्वजनिक सफाई और स्वच्छता का जो प्रबन्ध नजर आता है, उससे यह साफ जाहिर होता है कि सिन्धु-सरस्वती सभ्यता काल में भारतवासियों का जीवन उच्च स्तर का था। वे शोभा और दिखावे के स्थान पर सुविधा और उपयोगिता को अधिक महत्व देते थे और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक थे।

(iv) विशेष निर्मितियाँ:-

सिन्धु-सरस्वती सभ्यता  काल के विभिन्न नगरों की पुरातात्विक खुदाई में कुछ विशेष प्रकार की निर्मितियाँ, भवन और इमारतों के भग्नावशेष निकले हैं। इसमें नगर की गढ़ी वाले भाग में रक्षा प्राचीर धातु पिघलाने के स्थान, भट्टियाँ, यज्ञवेदियाँ, विशाल स्नानागार तथा विशाल अन्नागार आदि प्रमुख हैं | ये अवशेष सभ्यता की उन्नत अवस्था व वैज्ञानिकता का प्रमाण हैं।

(आ) सामाजिक जीवनः- 

सिन्धु-सरस्वती सभ्यता से सम्बंधित विभिन्न स्थानों पर खुदाई में ऐसी कई वस्तुएं मिली हैं, जिनसे यह पता चलता है कि उस काल में समाज कई प्रकार के काम-धन्धे करने वाले लोगों से मिलकर बना था। व्यक्ति अपनी योग्यता के अनुसार विभिन्न कार्य कर सामाजिक व्यवस्था को बनाये रखने में अपना योगदान देता था। धार्मिक, प्रशासनिक, चिकित्सा, सुरक्षा तथाउत्पादन प्रमुख कार्य थे।

 

(इ) परिवार व्यवस्था :-

सिन्धु-सरस्वती सभ्यता काल के भवनों व मकानों की व्यवस्था के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि उनके समाज की प्रमुख इकाई परिवार था बहुत अधिक संख्या में नारियों की मूर्तियाँ मिलने से यह माना जाता है कि सिन्धु -सरस्वती सभ्यता के काल के समाज और परिवार में नारी को सम्मानजनक स्थान प्राप्त था।

पर्दा प्रथा प्रचलित नहीं थी। स्त्रियाँ चाँदी व तांबे के आभूषण पहनती थी। ये लोग सूती वस्त्र पहनते थे। इन्हें अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान भी था। मनोरंजन के साधनों में संगीत, नृत्य व शिकार प्रमुख थे। सिन्धु-सरस्वती सभ्यता के लोग गेहूँ, जौ, चावल, दूध तथा मांसाहार का भोजन में उपयोग करते थे।

आर्थिक जीवन :-

(i) कृषि व पशुपालन- कालीबंगा में जुते हुए खेत के अवशेष मिले हैं। इससे लगता है किसिन्धु-सरस्वती सभ्यता के लोग खेती करते थे। वस्तुओं पर बने चित्रों के आधार पर पता चलता है कि सिन्धु-सरस्वती सभ्यता काल के लोग गेहूँ, जौ, चावल, तिल आदि की खेती करते थे। फल भी उगाते थे। कृषि के साथ पशुपालन सिन्धु-सरस्वती सभ्यता से सम्बद्ध लोगों का दूसरा मुख्य व्यवसाय था। पालतू पशुओं में गौ वंश का महत्व अधिक था।

(ii) व्यापार व वाणिज्य-  यहाँ के निवासी तांबे व कांसे के बर्तन व औजार बनाने के साथ ही मिट्टी के बर्तन व मटके बनाने की कला में निपुण थे। चन्हुदड़ो तथा कालीबंगा की खुदाई में तोल के अनेक बाट मिले हैं। मोहनजोदड़ो में सीप की एक टूटी पटरी (स्केल) मिली है। ये अवशेष उनके उन्नत और विकसित व्यापारिक एवं गणित सम्बंधी ज्ञान के परिचायक हैं।

गुजरात में लोथल नामक स्थान पर खुदाई में निकली एक गोदी (बन्दरगाह) के अवशेषों से पता चलता है कि यह समुद्री यातायात का प्रमुख केन्द्र था। मिस्र, सुमेर, सीरिया आदि दूर देशों से इनके घनिष्ठ व्यापारिक सम्बन्ध थे। भारत व मेसोपोटामिया की खुदाई से प्राप्त वस्तुओं में समानता का मिलना इस बात का प्रमाण है कि उनमें आपस में वस्तुओं का क्रय-विक्रय होता था। व्यापार की उन्नत व्यवस्था के कारण ही सिन्धु-सरस्वती सभ्यता को व्यापार प्रधान सभ्यता कहा जाता है।

 

5) धार्मिक जीवन:-

सिन्धु-सरस्वती सभ्यता काल के लोग प्रमुख रूप से प्राकृतिक शक्तियों के उपासक थे तथा पृथ्वी, पीपल, नीम, जल, सूर्य, अग्नि आदि में देवी शक्ति मानकर उनकी उपासना करते थे। मूर्तियों और मुद्राओंतथा ताबीजों के विश्लेषण के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि बलि प्रथा तथा जादू-टोना आदि अन्धविश्वास भी प्रचलित थे लोथल, बनावली एवं राखीगढ़ी से प्राप्त अग्नि वेदिकाओं से लगता है कि वहाँ यज्ञों व अग्नि पूजा का प्रचलन रहा होगा। मूर्तियों की उपासना के लिए धूप जलाई जाती थी। मातृदेवी व शिव की उपासना भी की जाती थी। मृतक संस्कार शव को गाढ़कर या दाह-कर्म करके किया जाता था।

 

(ऊ) सभ्यता का अवसान-

सिन्धु लिपि अभी सही ढंग से पढ़ी नहीं जा सकी है। अनुमान है कि इस सभ्यता का पतन प्राकृतिक कारणों से हुआ। वहाँ उस युग में रहने वाले निवासियों द्वारा परिश्रम से बनाए गए नगर भूपरिवर्तन से खण्डहर बन गए किन्तु उस अतीत में विकसित सभ्यता और संस्कृति के तत्त्व नष्ट नहीं हो सके। उनका आगे आने वाले युगों में भारतीय जन-जीवन में परोक्ष प्रभाव बना रहा । भारतीय संस्कृति के प्रारम्भिक चरणों के निर्माण में सिन्धु-सरस्वती सभ्यता का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

 

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