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चीन के यूनान प्रांत में 13वीं सदी की नाजियिंग मस्जिद के गुंबद गिराने के दौरान पुलिस और आम लोगों में झड़प
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दक्षिण-पश्चिम चीन के यूनान प्रांत में कई समुदायों के लोग रहते हैं जिनमें मुसलमान आबादी भी अच्छी तादाद में है
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जो समुदाय मस्जिद के निर्माण को गिराने का विरोध कर रहा है उसे चीन में ‘हुई’ समुदाय कहा जाता है
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इस प्रांत में क़रीब सात लाख हुई मुसलमान रहते हैं. पूरे चीन में इस समुदाय की आबादी करीब एक करोड़ है
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2018 में ही यूनान में तीन मस्जिदों पर ताला जड़ दिया गया था. सरकार ने कहा था कि इनमें अवैध धार्मिक शिक्षा दी जाती है
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चीन पर शिनजियांग प्रांत में वीगर मुसलमानों के ख़िलाफ़ मानवाधिकारों के हनन के आरोप लगते रहे हैं
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चीन आधिकारिक रूप से एक नास्तिक देश है और वहाँ की सरकार सभी धर्मों को स्वतंत्रता देने का दावा करती है
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चीन के यूनान प्रांत में हाल ही में एक मस्जिद की पुनर्निर्माण योजना के दौरान पुलिस और लोगों के बीच झड़प की ख़बरें सामने आई थीं.
इस घटना से जुड़ा वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा था. चीन के स्थानीय प्रशासन ने यूनान प्रांत के नागू क़स्बे में बनी 13वीं सदी की नाजियिंग मस्जिद के गुंबद और मीनार को ढहाने का फ़ैसला किया था.
किन साल 2020 में एक अदालती फ़ैसले में कहा गया कि मस्जिद में किए गए निर्माण अवैध हैं और उन्हें तुरंत हटा दिया जाए.
अदालत के इसी फ़ैसले की तामीर किए जाने के प्रयास होते रहे हैं. इस कारण इलाक़े में भारी प्रदर्शन हुए थे.
इसके साथ ही चीन का ज़ोर धर्म के चीनीकरण पर है. वो मस्जिदों के निर्माण में चीनी वास्तुकला को बढ़ावा देता है.

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चीन के यूनान प्रांत की हालिया घटना पूरी दुनिया ने देखी है. इससे पहले चीन के ही शिंजियांग प्रांत में चीन की सरकार का अभियान देखा जा चुका है.
चीन के वीगर मुसलमानों के दमन की ख़बरें बाहर आती रही हैं और उनको जबरन निगरानी कैंपों में भी भेजा जाता रहा है. चीन इन कैंपों को रिएजुकेशन कैंप बताता है.
इन सभी मामलों में दुनिया के मानवाधिकार संगठनों से लेकर अमेरिका, ब्रिटेन और कई यूरोपीय देश खुलकर चीन की निंदा कर चुके हैं और करते रहे हैं लेकिन कभी भी मुस्लिम देशों की ओर से इस पर कोई बयान नहीं आया.
पूरी दुनिया में मुसलमान या इस्लाम को लेकर कोई विवाद खड़ा होता है तो इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी के बयान आते रहे हैं. पैग़ंबर मोहम्मद पर बीजेपी नेता नूपुर शर्मा की विवादित टिप्पणी के बाद मुस्लिम देशों ने इसकी निंदा की थी. बीजेपी को नुपूर शर्मा को पार्टी से हटाना पड़ा था.
वहीं कश्मीर में हिंसा की ख़बरों के दौरान तुर्की जैसे देश भी टिप्पणी करते रहे हैं लेकिन चीन में मुसलमानों के ख़िलाफ़ सरकार की कार्रवाइयों के दौरान ये देश चुप्पी साधे रहते हैं.
मुस्लिम देशों के संगठन ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ इस्लामिक कॉपरेशन (ओआईसी) ने भी इस पर कभी कोई टिप्पणी नहीं की. यहां तक कि बीते साल मार्च में पाकिस्तान में हुई ओआईसी की बैठक में चीन के तत्कालीन विदेश मंत्री वांग यी विशेष अतिथि के रूप में पहुंचे थे.
इस दौरान वांग यी ने ये बताया कि चीन में मुसलमान कितने बेहतर तरीक़े से रहते हैं. साथ ही उन्होंने बताया कि ‘चीन और इस्लामी दुनिया दोनों का एक गहरा इतिहास है, सभी समान मूल्यों की तलाश करें और ऐतिहासिक मिशनों को साझा करें.’
वांग ने संयुक्त राष्ट्र में चीन का समर्थन करने को लेकर मुस्लिम जगत का शुक्रिया भी अदा किया था. अक्सर ये देखने को मिला है कि संयुक्त राष्ट्र में जब भी चीन से जुड़ा कोई भी प्रस्ताव आता है तो उससे मुस्लिम देश पहले अनुपस्थित रहते हैं.

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मुस्लिम देश चीन की करते रहे हैं तारीफ़
ओआईसी की बैठक के दौरान वांग यी ने वादा किया था कि बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) के तहत चीन मुस्लिम देशों में 400 अरब डॉलर निवेश करेगा.
मुस्लिम देशों और ओआईसी की चीन की कड़ी कार्रवाई पर चुप्पी को विश्लेषक ‘राजनीतिक नौटंकी’ भी बताते हैं.
लोकतांत्रिक देश चीन में मानवाधिकार उल्लंघनों का मुद्दा उठाते रहे हैं. वहीं दूसरी ओर ओआईसी के सदस्य देश पाकिस्तान, यूएई, सऊदी अरब, क़तर, ओमान, बहरीन, मिस्र और कुवैत चीन की तारीफ़ करते रहे हैं.
साल 2019 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार काउंसिल में 37 देशों देशों ने एक पत्र पर हस्ताक्षर किए थे जिसमें ‘इंसानों की सुरक्षा और विकास के ज़रिए मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के लिए’ चीन की तारीफ़ें की गई थीं.
इसमें यह भी दावा किया गया था कि चीन ने शिंजियांग में ‘आतंकवाद, अलगाववाद और चरमपंथ’ का सामना करते हुए ‘सुरक्षा और भरोसा’ स्थापित किया है.
चीन का कहना है कि वो शिंजियांग में चरमपंथ को ख़त्म करने के लिए कई नीतियां अपना रहा है.
थिंक टैंक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के फ़ैलो एजाज़ वानी अपने लेख में लिखते हैं कि ओआईसी देशों ने चीन में मुस्लिम विरोधी नीतियों को समर्थन देकर न सिर्फ़ उनका समर्थन किया है बल्कि चीन में इस्लामोफ़ोबिया को बढ़ाया है और वो भी अपराध में भागीदार हैं.
यह भी एक तथ्य है कि पाकिस्तान, ईरान, यूएई, सऊदी अरब, मलेशिया, तुर्की, क़तर, मिस्र और अफ़ग़ानिस्तान जैसे देशों ने वीगर मुसलमानों को हिरासत में लिया है या फिर उन्हें वापस चीन भेजा है.
क्यों चुप हैं मुस्लिम देश
मुस्लिम देशों की चुप्पी की वजह एजाज़ वानी बताते हैं, “मुस्लिम देश सत्तावादी हैं और हस्तक्षेपवादी नीतियों के कारण लोकतंत्र से ख़तरा महसूस करते हैं और ख़ासकर के अरब स्प्रिंग के बाद चीन ने इन मौजूदा परिस्थितियों का फ़ायदा उठाया है.”
“साथ ही चीन क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को बनाए रखने के लिए एक ग़ैर-हस्तक्षेपवादी नीति पर बल देता है.”
वानी चुप्पी की दूसरी वजह चीन के भारी भरकम क़र्ज़ को बताते हैं. वो कहते हैं कि चीन इन मुस्लिम देशों को बिना किसी शर्त के क़र्ज़ दे रहा है. बीआरआई के इन्फ़्रास्ट्रक्चर के लिए चीन अब तक पाकिस्तान को 62 अरब डॉलर तक का क़र्ज़ दे चुका है.
वो लिखते हैं कि चीन अपनी एनर्जी डिप्लोमेसी का भी इस्तेमाल करता है और वो सऊदी अरब, ईरान, कुवैत, ओमान और ईरान जैसे देशों के लिए कच्चे तेल के निर्यात का अहम केंद्र है.
क़तर ने साल 2019 में संयुक्त राष्ट्र के पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए थे लेकिन उसने सीधे तौर पर चीन की निंदा नहीं की. साल 2009 में तुर्की की सरकार ने चीन पर नरसंहार के आरोप लगाए थे लेकिन बाद में उसने भी नरम रवैया अपना लिया क्योंकि तुर्की की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक चीन पर निर्भर है.
इसके साथ ही चीनी इस्लामिक एसोसिएशन के ज़रिए चीन इस्लाम को लेकर अपना नैरेटिव सेट कर रहा है.

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‘द वॉशिंगटन पोस्ट’ में राजनीतिक विश्लेषक जोनाथन हॉफ़मैन लिखते हैं कि चीन मुस्लिम देशों के साथ धार्मिक गतिविधियां भी बढ़ा रहा है. चीनी इस्लामिक एसोसिएशन के ज़रिए मध्य पूर्व में चीन के धार्मिक प्रयास तेज़ हो रहे हैं.
इस एसोसिएशन का असली मक़सद ‘चीनी इस्लाम की विशिष्टता और पार्टी की विचारधारा की प्रशंसा’ पर ध्यान केंद्रित करना है.
साल 2021 में राष्ट्रपति शी ने धर्म के चीनीकरण का नारा दिया था. जिसका अर्थ था कि धार्मिक आस्थाओं को चीनी संस्कृति और समाज के अनुकूल बनाना.
ऑस्ट्रेलियन यूनिवर्सिटी में चाइना पॉलिसी के एक्सपर्ट माइकल क्लार्क मुस्लिम देशों की ख़ामोशी का कारण चीन की आर्थिक शक्ति और पलटवार के डर को मुख्य कारण मानते हैं. क्लार्क ने एबीसी से कहा है, ”म्यांमार के ख़िलाफ़ मुस्लिम देश इसलिए बोल लेते हैं क्योंकि वो कमज़ोर देश है. उस पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाना आसान है. म्यांमार जैसे देशों की तुलना में चीन की अर्थव्यवस्था 180 गुना ज़्यादा बड़ी है. ऐसे में आलोचना करना भूल जाना अपने हक़ में ज़्यादा होता है.”